शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले- राकेश मिश्रा
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस उन्नाव फलक एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट, मायरा फाउंडेशन ट्रस्ट,उन्नाव अभिभावक संघ एवं दोस्त सेवा संस्थान के सदस्यों ने मोतीझील स्थित अमर जवान ज्योति पर रेजांगला के शहीदों को याद करने के साथ मेजर शैतान सिंह के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया। राकेश मिश्रा,प्रज्ञात राजन द्विवेदी, शबाब हुसैन,सुनीत तिवारी द्वारा अपने संयुक्त वक्तव्य में बताया कि देश का इतिहास भारतीय सैनिकों के साहस, बलिदान और बहादुरी के किस्सों से भरा है। ऐसे कई मौके आए जब मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों को सिर्फ शर्मनाक हार ही नहीं दी बल्कि उनके नापाक मंसूबों को भी खाक में मिलाया। 56 साल पहले 18 नवंबर, 1962 और लद्दाख की चुशुल घाटी में प्रवेश का रास्ता रेजांगला भारतीय सैनिकों के इस बहादुरी और बलिदान के जज्बे का गवाह बना था। भारतीय सेना की 13 कुमाऊं के 120 जवानों ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीन के 1700 सैनिकों को मार गिराया था।18 नवंबर, 1962 की सुबह। लद्दाख की चुशुल घाटी बर्फ से ढंकी हुई थी। माहौल में एक खामोशी सी थी। लेकिन यह खामोशी ज्यादातर तक नहीं रह सकी। 03.30 बजे तड़के सुबह घाटी का शांत माहौल गोलीबारी और गोलाबारी से गूंज उठा। बड़ी मात्रा में गोला-बारूद और तोप के साथ चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 5,000 से 6,000 जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थी। भारतीय सैन्य टुकड़ी में मात्र 120 जवान थे जबकि दूसरी तरफ दुश्मन की विशाल फौज। ऊपर से बीच में एक चोटी दीवार की तरह खड़ी थी जिसकी वजह से हमारे सैनिकों की मदद के लिए भारतीय सेना की ओर से तोप और गोले भी नहीं भेजे जा सकते थे।
अब 120 जवानों को अपने दम पर चीन की विशाल फौज और हथियारों का सामना करना था। हमारे सैनिक कम थे और उनके पास साजोसामान की कमी थी लेकिन उनका हौसला बुलंद था। 13 कुमाऊं के वीर सैनिकों ने जो संभव हो सका, उतना ही सही जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी।मेजर शैतान सिंह का बेमिसाल नेतृत्वभारत की सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे जिनको बाद में परमवीर चक्र (पीवीसी) से सम्मानित किया गया। वह जान रहे थे कि युद्ध में उनकी हार तय है लेकिन इसके बावजूद बेमिसाल बहादुरी का प्रदर्शन कर रहे थे। उन्होंने दुश्मन की फौज के सामने हथियार डालने से मना कर दिया और असाधारण बहादुरी का परिचय दिया। मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी ने आखिरी आदमी, आखिरी राउंड और आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। 13 कुमाऊं के 120 जवानों ने चीन के 1,700 के करीब सैनिक मार गिराए लेकिन विशाल सेना के सामने वे कब तक टिकते। उनमें से 114 मातृभूमि की रक्षा के प्रति खुद को कुर्बान कर दिया। 6 जिंदा बचे थे जिसे चीनी सैनिक युद्ध बंदी बनाकर ले गए थे लेकिन सभी चमत्कारिक रूप से बचकर निकल गए। बाद में इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था।उस युद्ध में जो छह जवान बचे थे उनमें से एक मानद कैप्टन रामचंद्र यादव थे। वह 19 नवंबर को कमान मुख्यालय पहुंचे थे और 22 नवंबर को उनको जम्मू स्थित एक आर्मी हॉस्पिटल में ले जाया गया था। उन्होंने युद्ध की पूरी कहानी बताई। यादव का मानना है कि वह जिंदा इसीलिए बचे ताकि पूरे देश को 120 जवानों की वीरगाथा सुनाए। उनके मुताबिक, शुरू में चीन की ओर से काफी उग्र हमला किया गया। दो बार पीछे धकेले जाने के बाद उनका हमला जारी रहा। जल्द ही भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो गया और उन्होंने नंगे हाथों से लड़ने का फैसला किया। यादव ने नाईक राम सिंह नाम के एक सैनिक की कहानी बताई जो रेसलर थे। उन्होंने अकेले दुश्मन के कई सैनिक मार गिराए जब तक कि दुश्मन की ओर से उनके सिर में गोली नहीं मार दी गई।13 कुमाऊं के 120 जवान दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र यानी गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिलों के थे। रेवाड़ी और गुड़गांव में रेजांगला के वीरों की याद में स्मारक बनाए गए हैं। रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।रेजांगला नाम क्यों पड़ा?रेजांगला जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। 1962 के युद्ध में 13 कुमाऊं दस्ते का यह अंतिम मोर्चा था। इसीलिए इसे रेजांगला युद्ध के नाम से जाना जाता है।कार्यक्रम में प्रमुख रूप से शामिल रहे राकेश मिश्रा,नवीन अग्रवाल,सुनील बाल्मीकि,सुमित गौड़, राजेश गौड़, सौरभ त्रिपाठी ,लक्ष्मी निषाद ,सुमित शुक्ला आयुष सिंह , सुनीत तिवारी,विवेक हिंदू,, अधिवक्ता मधु यादव, रवि शुक्ला, रमाकांत ,हरिशंकर प्रजापति, आशीष शुक्ला,वसीम यादव,कैलाश जैन,श्याम जैन,कमल यादव, साहिल यादव, पंकज यादव, सुमित गौड़, राजेश गौड़, शैलेंद्र पांडे,प्रदीप त्रिपाठी,राम जी मिश्रा,मो.इकबाल, आयुष पाठक इत्यादि रहे।
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