चिकित्सकों ने मिनिमली इनवेसिव सर्जरी द्वारा 28 वर्षीय महिला के अन्दर से दुर्लभ एड्रेनल ट्यूमर को आसानी से निकाला |
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | देश के अग्रणी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं में से एक उजाला सिग्नस ने मिनिमली इनवेसिव लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया का उपयोग करके 28 वर्षीय महिला से एक दुर्लभ और खतरनाक एड्रेनल ग्लैंड ट्यूमर 'फियोक्रोमोसाइटोमा' को सफलतापूर्वक निकालकर कानपुर में इतिहास रच दिया।
उजाला सिग्नस कुलवंती हॉस्पिटल के डॉक्टरों की सतर्कता और त्वरित प्रतिक्रिया की वजह से महिला की जान बच पाई। सर्जरी में बहुत ज्यादा खतरा होने के बावजूद महिला को आईसीयू में नहीं रहना पड़ा और उन्हें सर्जरी के 3 दिनों में ही छुट्टी दे दी गई।
महिला को नहीं पता था कि उनके शरीर में ट्यूमर है। वह शुरू में किसी अन्य अस्पताल में निसंतानता का इलाज करा रही थी। हालाँकि जब उन्हें कभी-कभी सिरदर्द, असमान धड़कन और सांस फूलने का अनुभव होने लगा, तो उन्होंने उजाला सिग्नस कुलवंती हॉस्पिटल में आकर डॉक्टर से कंसल्ट किया। उनके असामान्य लक्षणों को देखते हुए उजाला सिग्नस कुलवंती हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने तुरंत उनकी जांच की। अल्ट्रासाउंड में बाईं किडनी के ऊपर एक द्रव्यमान का पता चला, इसके बाद और गहन जांच हुई। इसके बाद एक कंट्रास्ट सीटी स्कैन में बाईं एड्रेनल ग्लैंड पर 6x6 सेमी के ट्यूमर का पता चला।
उजाला सिग्नस कुलवंती हॉस्पिटल के यूरोलॉजिस्ट डॉ सत्यम श्रीवास्तव ने इस केस के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, "शुरूआती डायग्नोसिस के बाद फंक्शनल इवैल्यूएशन (मूल्यांकन) से फियोक्रोमोसाइटोमा ट्यूमर का पता चला। फियोक्रोमोसाइटोमा होना बहुत ही दुर्लभ हैं, और हमें आम तौर पर 2 से 3 सालों में इसके जैसा एक केस मिलता है, लेकिन अतिरिक्त हार्मोन रिलीज करने की उनकी क्षमता के कारण वे एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं, इससे हाई ब्लड प्रेशर और हाई ब्लड शुगर होने से संभावित रूप से जानलेवा ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक हो सकता है।"
इस केस में एड्रेनल ट्यूमर ब्लड प्रेशर को गंभीर रूप से बढ़ा रहा था। ब्लड प्रेशर के लेवल की रीडिंग खतरनाक 220/150 mmHg (सामान्य रक्तचाप लगभग 110/70 mmHg) तक पहुंच गई थी। इस अनियंत्रित हाइपरटेंशन ने उनके लक्षणों को गंभीर बना दिया।
डॉ सत्यम श्रीवास्तव के साथ डॉ कुश पाठक (सर्जिकल ऑनकोलॉजिस्ट) ने सर्जरी को सफल बनाने में योगदान दिया। आगे इस केस के बारे में बताते हुए डॉ सत्यम ने कहा, "फियोक्रोमोसाइटोमा की जटिल प्रकृति और सर्जरी के दौरान होने वाले खतरों के कारण सर्जरी की योजना सावधानीपूर्वक बनाना महत्वपूर्ण था। ट्यूमर की हार्मोनल एक्टिविटी ब्लड प्रेशर और हृदय गति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है, जिससे सर्जरी चुनौतीपूर्ण हो जाती है।"
इस चुनौती से निपटने के लिए उजाला सिग्नस टीम ने मल्टीडिस्प्लिनरी दृष्टिकोण अपनाया। डॉ. शिवेंद्र (डीएम एंडोक्राइनोलॉजी) ने मरीज के ब्लड प्रेशर और अन्य चीजों की सावधानीपूर्वक निगरानी और नियंत्रण करते हुए दो हफ्ते तक प्री-ऑपरेटिव ऑप्टीमाईजेशन किया। इससे सर्जिकल खतरों को काफी कम करने में मदद मिली।
डॉ. सत्यम श्रीवास्तव (यूरोलॉजी), डॉ. कुश पाठक (सर्जिकल ऑन्कोलॉजी), और डॉ. प्रदीप नैथानी (एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर) की एक टीम द्वारा लेप्रोस्कोपिक लेफ्ट एड्रेनालेक्टोमी की गई। इस मिनीमली इनवेसिव तकनीक में लेप्रोस्कोपिक उपकरणों और एक कैमरे की मदद से सर्जिकल साइट तक पहुंचने के लिए पेट में छोटे-छोटे पोर्ट बनाना होता है।
डॉ कुश पाठक ने प्रक्रिया को समझाते हुए बताया, "लेप्रोस्कोपिक सर्जरी पारंपरिक ओपन सर्जरी की तुलना में कई लाभ प्रदान करती है। जैसेकि इसमें बहुत कम खून बहता है, मरीज जल्दी ठीक होता है और मरीज को बहुत कम दर्द होता है।"
इसके अलावा सर्जरी के दौरान स्थिर हेमोडायनामिक्स (रक्त प्रवाह और दबाव) प्राप्त करना मरीज की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी था। टीम के एनेस्थीसिया एवं क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ. प्रदीप नैथानी ने ऐसा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस बारे में कहा, "एनेस्थीसिया और दर्द की दवा के सटीक नियंत्रण ने एड्रेनल ट्यूमर को हटाने के दौरान ब्लड प्रेशर और हृदय गति में बहुत कम उतार-चढ़ाव होने दिया, और सर्जिकल टीम को बहुत कम ख़तरे के साथ ऑपरेशन करने की सहूलियत प्रदान की।"