कानपुर मेट्रो के विश्वकर्माओं ने रची इंजीनियरिंग की नई इबारत, शहर को मिला अंडरग्राउंड मेट्रो का उपहार
U-नौबस्ता चौराहे को बिना ट्रैफिक रोके स्टील स्पेन के जरिए पार करके बनाया कीर्तिमान: एमडी सुशील कुमार
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | मेट्रो ने निर्माण कार्य आरंभ होने के बाद शहर के भीतर इंजीनियरिंग क्षमता के नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। मेट्रो इंजीनियरों की मेहनत और दूरदर्शिता से आज कानपुर ना केवल विकास की ओर तेजी से अग्रसर है, बल्कि इसकी जीवनशैली और यात्रा के तरीके भी व्यापक रूप से बदल रहे हैं। शहर के भीतर बड़ी संख्या में लोग अब निजी वाहनों की बजाय मेट्रो जैसे सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने लगे हैं। वर्ष 2025 कानपुर के लिए विशेष रूप से ऐतिहासिक कहा जा सकता है, जब मई 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झंडी दिखाकर पहली बार अंडरग्राउंड मेट्रो को नयागंज स्टेशन से रवाना किया।
पांच अंडरग्राउंड स्टेशनों और टनल्स में सफर करने का अनुभव यात्रियों के लिए रोमांचक रहा। कानपुर के नए स्वरूप की कल्पना को मेट्रो ने हकीकत में बदल दिया।
कानपुर मेट्रो के अंडरग्राउंड स्टेशनों की दीवारों पर शहर की संस्कृति, परंपरा और गौरवशाली इतिहास को उकेरा गया है। लाल इमली की विरासत हो या स्वतंत्रता संग्राम की गूंज, कानपुर की बोलियां हों या गंगा घाट के दृश्य - सब कुछ इन दीवारों पर जीवंत है। यात्रियों के लिए ये स्टेशन अब केवल सफर का माध्यम नहीं, बल्कि पसंदीदा ‘सेल्फी पॉइंट’ बन चुके हैं।
- स्टील स्पैन की अद्भुत उपलब्धि, जहां असंभव को किया संभव
उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (यूपीएमआरसी) के अंतर्गत कानपुर मेट्रो के कॉरिडोर-1 (आईआईटी से नौबस्ता) और कॉरिडोर-2 (सीएसए से बर्रा-8) का निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस दौरान कई ऐसी उपलब्धियां दर्ज की गईं, जो तकनीकी दृष्टिकोण से असाधारण मानी जा सकती हैं। बसंत विहार से किदवई नगर स्टेशन के बीच वायाडक्ट का निर्माण नौबस्ता फ्लाईओवर के ऊपर से करना एक बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती थी। इस चुनौती को पार करते हुए तीन रातों में - 31 मई से 2 जून तक, छह स्टील बॉक्स गर्डर्स को बेहद सावधानीपूर्वक स्थापित किया गया। इसी प्रकार, बृजेंद्र स्वरूप पार्क के समीप सीसामऊ नाले के ऊपर 45 मीटर लंबे स्टील बॉक्स गर्डर्स का सफल परिनिर्माण किया गया, जो इस क्षेत्र की सबसे जटिल संरचनाओं में से एक रहा।
मेट्रो निर्माणः केवल संरचना नहीं, एक समावेशी प्रयास
यूपीएमआरसी के प्रबंध निदेशक सुशील कुमार के अनुसार, “कानपुर जैसे घनी आबादी वाले शहर में हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती लोगों और विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित कर निर्माण कार्य के लिए रास्ता तैयार करना है। मेट्रो निर्माण का अर्थ केवल कंक्रीट और स्टील का ढांचा खड़ा करना नहीं है, बल्कि जनभागीदारी, संवाद और संवेदनशील योजना बनाना भी इसका अहम हिस्सा है। कई बार हमें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार डिज़ाइन और योजनाओं में परिवर्तन करने पड़े। पेयजल, बिजली, सड़कों जैसी आवश्यक सेवाओं को प्रभावित किए बिना, समन्वय के साथ इस महती कार्य को पूरा करना ‘ह्यूमन इंजीनियरिंग’ का उत्कृष्ट उदाहरण है।”
- नौबस्ता तक मेट्रो सेवाओं की तैयारी में तेजी
कॉरिडोर-1 के अंतर्गत आईआईटी से कानपुर सेंट्रल तक यात्री सेवाएं शुरू हो करने के बाद अगला लक्ष्य नौबस्ता तक मेट्रो सेवा का संचालन है। झकरकटी से कानपुर सेंट्रल के बीच टनलिंग कार्य अंतिम चरण में है, वहीं बारादेवी से नौबस्ता तक ट्रैक बिछाने का कार्य भी लगभग पूर्णता की ओर है। समय की बचत और कार्य में गति लाने के लिए इस सेक्शन में पड़ने वाले सात स्टेशनों पर सिग्नलिंग, टेलिकॉम और इलेक्ट्रिकल सिस्टम्स के इंस्टॉलेशन का कार्य भी साथ-साथ किया जा रहा है।
- कॉरिडोर-2 का सिविल निर्माण कार्य भी तेजी से बढ़ रहा आगे
लगभग 8.60 किलोमीटर लंबे कॉरिडोर-2 (सीएसए से बर्रा-8) का सिविल निर्माण कार्य अप्रैल 2024 में प्रारंभ हुआ था। इसके एलिवेटेड और अंडरग्राउंड सेक्शनों में अब तक तीन-चौथाई पाइलिंग, पाइल कैप और पिलर निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं। पियर-कैप्स का 50 प्रतिशत से अधिक इरेक्शन कार्य भी पूरा हो चुका है। सीएसए परिसर स्थित कॉरिडोर-2 डिपो से काकादेव तक 'डाउनलाइन' टनलिंग संपन्न हो गई है और 'अप-लाइन' टनलिंग भी शीघ्र पूर्ण होने की उम्मीद है।
- इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ने दी सर्वोच्च ‘प्लैटिनम रेटिंग‘
हाल ही में कॉरिडोर-1 (आईआईटी- नौबस्ता) के अंतर्गत चुन्नीगंज से ट्रांसपोर्ट नगर तक स्थित सभी 7 अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों को इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउन्सिल (आईजीबीसी) द्वारा ‘प्लैटिनम रेटिंग’ प्रदान की गई है, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से किसी भी निर्माण परियोजना को दी जाने वाली सर्वोच्च मान्यता है। कानपुर मेट्रो के दोनों कॉरिडोरों के पूर्ण होने से न केवल ट्रैफिक की भीषण समस्या से राहत मिलेगी, बल्कि शहर के बढ़ते कार्बन फुटप्रिंट को भी कम किया जा सकेगा। इससे उत्तर प्रदेश के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले शहर की अर्थव्यवस्था को नई गति और ऊर्जा मिलेगी।