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यूपी एपीकॉन-2025 का हुआ शुभारम्भ, देश के कोने-कोने से पहुंचे विशेषज्ञ
Updated: 11/2/2025 2:59:00 PM By Reporter- rajesh kashyap kanpur

यूपी एपीकॉन-2025 का हुआ शुभारम्भ, देश के कोने-कोने से पहुंचे विशेषज्ञ
U- हार्ट, लिवर, स्नेक बाइट और बढ़ते प्रदूषण पर हुई चर्चा
U- ठण्ड और बढ़ता प्रदूषण बीपी, हार्ट और लकवा जैसी बीमारी को दे रहे है दावत
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में एसोसिएशन ऑफ फिजीशियन ऑफ इंडिया (एपीआई) उत्तर प्रदेश चैप्टर के 42वें वार्षिक अधिवेशन यूपी एपीकॉन-2025् का भव्य शुभारंभ मेडिकल कॉलेज के सभागार में  हुआ। सम्मेलन का उद्देश्य आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान, क्लिनिकल प्रथाओं और व्यवहारिक उपचार विधियों को एक साथ मंच पर लाना है।
बदलते मौसम और बीपी की बढ़ती समस्या ने जहां ब्रेन स्ट्रोक और लकवा जैसी बीमारियों पर हाबी होना शुरू किया है तो वही बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगो में कार्डिक की समस्या ज्यादा हो रही है। इसके साथ ही लोगों की जीवन शैली इस कदर बन गई है कि अधिकांश लोग किसी न किसी बीमारी के शिकार हो रहे है। इन्हीं विषयों पर देश के विभिन्न राज्यों से आए विशेषज्ञों ने साझा मंच करते हुए महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए जागरूक किया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में डॉ. संजय टंडन (चेयरमैन एपीआई यूपी चौप्टर ), डॉ. एस.सी. चौधरी (सचिव) डॉ. ऋचा गिरी (आयोजन चेयरपर्सन), डॉ. एस. के. गौतम आयोजन सचिव), डॉ. सौरभ अग्रवाल (कोषाध्यक्ष) सहित अनेक वरिष्ठ चिकित्सक एवं शिक्षाविद उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ. ज्योतिर्मय पाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष, ए.पी.आई., तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. शेखर चक्रवर्ती, पूर्व सचिव-जनरल एवं सदस्य, फैकल्टी काउंसिल, ए.पी.आई. ,डॉ. संजय काला, प्राचार्य एवं अधिष्ठाता, जी.एस.वी. एम. मेडिकल कॉलेज ने दीप प्रज्वलन कर किया। इस अवसर पर सम्मेलन की स्मारिका तथा मेडिकल अपडेट पुस्तक का विमोचन किया भी गया। सम्मेलन के पहले दिन विविध विषयों पर देशभर के विशेषज्ञों ने अपने अनुभव एवं अनुसंधान साझा किए। टॉक्सिकोलॉजी सत्र में डॉ. के.के. गुप्ता (बीएचयू) ने स्नेक बाइट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सांप काटने के बाद 30 मिनट से लेकर 48 घंटे के अन्दर ही मरीज को अस्पताल पहुंचाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि कोबरा सांप में 12 मिलीग्राम जहर तो करेत सांप में 6 से 8  मिलीग्राम जहर पाया जाता है। सांप काटने पर मरीज के पैरो को कस कर नही बांधना चाहिए इससे रक्त संचार पर असर होता है और मरीज को चक्कर आना, सदमा लगना और पलके झपकने जैसे लक्षण शुरू हो जाते है। उन्होंने बताया कि 20 प्रतिशत लोग सांप काटने पर अस्पताल पहंुचते है जबकि 80 फीसदी लोग झाड फूंक में मरीज की जान गंवा देते है।
- वायु प्रदूषण बन सकता है हदय रोग का कारण
डा मधुर यादव ने बताया कि कार्डियोवैसकुलर रिस्क प्रददूषण के कारण बढ़ जाता है, जोकि दिल की बीमारी पैदा करता है। उन्होंने बताया कि प्रदूषण दो तरह के होते है पहला पार्टीकल्स और दूसरा गैसेस के रूप में पार्टीकल्स मैटर 10 माइक्रोन के साइज का होता है जिसका प्रममुख कारण बस से उडने वाली धूल और खनन है।  जबकि 2.5 माइक्रोन का पार्टीकल्स हवा में तेजी से तैरता है जो कि कई किलोमीटर तक उडता रहता है और सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। वहीं 1 माइक्रोन जसे सबसे सूक्ष्म हहोता है शरीर के अन्दर प्रवेश कर आक्सीजन में मिल कर आर्गनस को प्रभाावित करता है। उन्होंने बताया कि जब 2.5 माइक्रोन की मात्रा बढ़ती है तो हार्ट फेलियर, अटैक पडता है। इसके सबसे ज्यादा उन्हें प्रभावित करता है जो डायबटटीज ,बीपी और लिपिड प्रोफाइल बढ़ा होता है। वायु प्रदूषण घर में भी होता है जैसे कोयला लजाना, लकडी जलाना और डसटिंग है।
- समय रहते लकवे से हो सकता है बचाव
यूपीएपीआईकॉन-2025 सम्मेलन में एम्स से आयी डॉ दिप्ति विभा ने बताया कि लकवा, पक्षाघात जैसी बीमारियों का इलाज समय रहते हो सकता है और उसके लकवे को ठीक किया जा सकता है। उन्होंने  बताया कि बी फास्ट यानी की लकवा पडने पर उसके लक्षण जैसे कम दिखना, फेस का टेढ़ा होना, क्लॉट का जमना पाया जाता है। अधिकाशं क्लॉट जमे मरीजो में स्टंट डाल कर उनका क्लॉट खोला जाता है।  
- सार्काेपेनिया फ्रेलटी का इलांज संभव
केजीएएयू लखनऊ से आए मेडिसन विभाग के प्रो0 डॉ कौसर उस्मान ने बताया कि सार्काेपेनिया कंकाल की मांसपेशियों की शक्ति में गिरावट है जो वयस्कों, विशेष रूप से वृद्धावस्था में, गिरने, फ्रैक्चर, विकलांगता, अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर के जोखिम को बढ़ाती है। उन्होंने बताया कि मांसपेशियों की शक्ति में कमी के प्रमुख कारण है उनमें विटामिन डी और प्रोटीन की कमी का होना। उन्होंने बताया कि सार्काेपेनिया सामान्य उम्र बढ़ने से इस मायने में अलग है कि इसके परिणामस्वरूप कार्यात्मक स्वतंत्रता में एक मापनीय गिरावट आती है जैसे हाथों की कमज़ोरी, कुर्सी की ऊँचाई में कमी, और चाल की गति में कमी, इन मापदंडों में अपेक्षाकृत छोटे बदलावों के साथ भी, मृत्यु दर भी हो जाती है। इसको मापने के लिए उन्होंने बताया कि वाकिंग स्पीड से इसे नापा जा सकता है। अगर व्यक्ति 5 सेंकेंड के अन्दर 4 मीटर चला जाता है और कुर्सी से बैइा व्यक्ति अगर उतर कर 10 सेकेंड के अन्दर 3 मीटर की दूरी तय कर लेता है तो वह स्वस्थ्य है ,लेकिन अगर इसमें समय बढ़ता है तो वह फ्रेलटी का शिकार है। उन्होंने बताया कि हर व्यक्त् िको 1 ग्राम प्रोटीन प्रति किलो के हिसाब से लेनी होती है ,लेकिन .7 ग्राम प्रोटीन प्रति किलो के हिसा से ली जाती है जो कि इस बीमारी के बढ़ने का प्रमुख कारण है। इसके लिए व्यक्ति को एरोबिक एक्सरसाइज करना चाहिए तो वही 50 वर्ष की उम्र के लोगो को जिम जाने से भी काफी फायदा मिल सकता है। डायइट में प्रोटीन को शामिल करना चाहिए जिसमें दही, राजमा, अण्ज्ञ और मछली प्रमुख रूप से है। इसके साथ ही विटामिन डी की जांच जरूर करवानी चाहिए। उन्होंने बताया कि सार्काेपेनिया को कैचेक्सिया और मांसपेशियों के द्रव्यमान में कमी के बिना सामान्य कमज़ोरी से अलग करना ज़रूरी है। कैचेक्सिया के सापेक्ष सार्काेपेनिया ज़रूरी नहीं कि सक्रिय सूजन या घातक बीमारी से जुड़ा हो, बल्कि पृथक डायनेपेनिया के विपरीत, सार्काेपेनिया मांसपेशियों की ताकत और संरचना दोनों को प्रभावित करता है।
बीएचयू (चण्डीगढ़) से आए डॉ अशोक कुमार पन्नू ने सेल्फॉस पॉइजनिंग के उपचार में हुई प्रगति के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एल्सयुमिनियम सल्ॅोसाइड यानी की सल्फास खाने से यह सबसे ज्यादा असर हदय पर करता है। इसको खाने के कुढ घंटे के अन्दर ही टाक्सी शरीर के अन् दर फैलना शुरू कर देता है। यह अब दो फार्म में आते है पहला टेबलेट व दूसरा पाउडर के रूप में। सल्फास खाने से यह फास्फीन गैस पेट से ख्ूान में चली जाती है और हदय तथा सांस का अवरूद्ध करने लगती है। इस दशा में मरीज को उल्टी नही कराना चाहिए इससे मरीज की सांस नली में सल्फास पहुंच कर उसमें बाध पैदा करता है जिससे मरीज की मौत भी हो सकती है। इस लिए उसे जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहिए क्यो कि इसमें कोई भी गोल्डन टाइम नही मिलता है। इंसुलीन का हाइ डोज कुछ मामले में प्रभावी रहता है।  

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