“लोकोक्ति सम्राट महाकवि घाघ की कहावतें आज भी कनउजी बोली की प्राण हैं
-पी.एस.एम.पी.जी.कॉलेज में अन्तर्राष्ट्रीय मात्रभाषा सप्ताह के तहत आयोजित हुई भाषण प्रतियोगिता
कन्नौज ब्यूरो पवन श्रीवास्तव के साथ प्रिंस श्रीवास्तव
हिंदुस्तान न्यूज एक्सप्रेस कन्नौज संवाददाता। पीएसएमपीजी. कॉलेज में ‘अंतर्राष्ट्रीय मात्रभाषा सप्ताह’ के तहत आज भाषण प्रतियोगिता एवं पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया गया। “कनउजी बोली एवं लोकोक्ति सम्राट महाकवि घाघ” विषय पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में प्रतिभागी छात्र-छात्राओं ने लोकभाषा व् महाकवि घाघ संबंधी अपने ज्ञान से अपनी माटी के प्रति अति अनुरक्ति को व्यक्त किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में कनउजी बोली के प्रतिष्ठित व् लोकप्रिय गीतकार अतुल पाठक मौजूद रहें।कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. शशिप्रभा अग्निहोत्री ने की, वहीं संचालन का दायित्व हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर व सांस्कृतिक परिषद् के संयोजक डॉ.कृष्ण कान्त दुबे ने किया द्य महाविद्यालय में आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय मात्रभाषा सप्ताह’ का संयोजन बी.एड. विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. श्याम कुमार बाजपेई ने किया।कार्यक्रम में सर्वप्रथम भारतीय परंपराओं का निर्वाहन करते हुए मुख्य अतिथ श्री अतुल पाठक जी एवं प्राचार्या डॉ.शशिप्रभा अग्निहोत्री जी ने मंच पर स्थापित माँ शारदे के चित्र का माल्यार्पण व् पुष्प अर्पण किए। तत्पश्चात महाविद्यालय की ओर से कनउजी बोली के लोकगीत सम्राट अतुल पाठक का विशेष सम्मान किया गया। अंग्रेजी विभाग के प्रभारी/ अध्यक्ष डॉ. प्रत्यूष चन्द्र, भूगोल विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर अमित सचान, हिंदी विभाग के प्रभारी/अध्यक्ष डॉ.सुरेन्द्र कुमार ने शाल, प्रतीक चिन्ह व महाविद्यालय की पत्रिका देकर सम्मानित किया। मुख्य अतिथि अतुल पाठक ने कनउजी बोली में सर्जित अपने लोकगीत सुनाकर सभी के अंतर्मन में कनउजी के प्रति सम्मान व अनुरक्ति का भाव पैदा कर दिया। उन्होंने गीत सुनाते हुए कनउजी की ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्क्रतिक एवं साहित्यिक विशेषताओं को जन-मन में उतारने का पूरा प्रयास किया। इस अवसर पर महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ.शशिप्रभा अग्निहोत्री ने कहा किसी भी क्षेत्र विशेष की लोकभाषा उस क्षेत्र के जनमानस की भाव-अभिव्यक्ति का सबसे मजबूत माध्यम होती है। कनउजी बोली भी हमारे जन-मन की भावनाओं को व्यक्त करने का काम करती है। यह लोक परंपराओं और लोक संस्क्रति को सजीवता प्रदान करती है। कनउजी बोली के सैंकड़ों ऐसे कवि व् लेखक हुए जिन्होंने इसको आगे बढ़ाने का काम किया, किन्तु जो काम विद्याधर, परमानन्द दास और महाकवि घाघ ने किया। घाघ की लोकोक्तियाँ आज भी प्रासांगिक हैं। वे सर्वभौमिक ज्ञान के भंडार थे।संचालन कर रहे सहायक प्रोफेसर हिंदी विभाग व सांस्क्रतिक परिषद् के संयोजक डॉ. कृष्ण कान्त दुबे ने कनउजी बोली की प्राचीनता व् लोकप्रियता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कनउजी बोली साहित्यिक द्रष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
सम्राट हर्ष के समय में संस्क्रत के लोकप्रिय कवि बाणभट्ट, भवभूति, भट्ट नारायण, विशाखा दत्त, राजशेखर आदि के आलावा कनउजी बोली के कवि विद्याधर, परमानन्द दास, महाकवि घाघ, सुखदेव, पं. रूपचन्द्र, पं. लज्जाराम शुक्ल ‘अरविन्द’, इच्छालाल, शिवप्रसाद द्विवेदी, विजय बहादुर अग्निहोत्री आदि ने कनउजी बोली को साहित्यिक रूप से अत्यंत समर्द्ध किया। हिंदी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. पूजा त्रिपाठी ने अपने स्वागत वक्तव्य द्वारा अतिथियों का गरिमामय स्वागत करते हुए कहा “सांस्क्रतिक व साहित्यिक द्रष्टि से कनउजी बोली परिक्षेत्र अत्यंत समर्द्ध एवं महत्वपूर्ण है। यहाँ का ऐतिहासिक, राजनीतिक, पौराणिक एवं सांस्क्रतिक-साहित्यिक इतिहास अति उन्नतशील और विश्व प्रसिद्ध है। बाबा चिंतामणि की तपोभूमि पर ईश्वर वर्मा, ईशान वर्मा, हर्षवर्धन और यशोवर्मन एवं जयचंद जैसे शूरवीर सम्राट हुए हैं, जिनकी यशोगाथा इतिहास के गौरवमयी प्रष्ठों पर आज भी अंकित है। डा. संगीता पाण्डेय ने विषय की भूमिका रखते हुए कहा कि “कहावतें और लोकोक्तियां हमारे जीवन में माटी की सुगंध की तरह रची-बसी होती है। लोक्तियाँ वेदवाक्य की तरह होती हैं।‘अंतर्राष्ट्रीय मात्रभाषा सप्ताह’ के संयोजक डॉ. श्याम कुमार बाजपेई ने आभार व्यक्त करते हुए कहा “इस तरह के कार्यक्रम हमारी युवा पीढ़ी को प्रेरित करते हैं। कन्नौजी बोली के लोकगीत सदाबहार है। उनकी लोकप्रियता आज भी बनी हुई है। आयोजित हुई निबंध एवं भाषण प्रतियोगिता के सफल प्रतिभागियों को पुरस्क्रत किया गया। इस अवसर पर वरुण वशिष्ठ, डॉ.अमित कुमार, डॉ. आशीष सिंह, डॉ. प्रीति शर्मा, शिवनारायण, कार्यालय अधीक्षक दीपू मिश्रा, अभिषेक पाठक, हरिश्चन्द्र आदि ने उपस्थित होकर सहयोग प्रदान किया।
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