“नवरात्रि : नारी सम्मान का नवीन संकल्प”
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस पुणे नवरात्रि के दिनों में नारी के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। माँ के जयकारे, कन्या पूजन और कन्याओं को भेंट, इसके साथ ही कीर्तन-भजन करके माँ को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है, परंतु क्या यह मात्र 09 दिनों तक ही सीमित रहना चाहिए। ये कन्याएँ, माताएँ-बहने और नारी शक्ति तो प्रत्येक परीस्थिति और प्रत्येक क्षण में सदैव सम्मान के पात्र है। ईश्वर स्वयं राधा-कृष्ण, सीता-राम, उमा-महेश का स्मरण स्वीकार करते है। वे स्वयं भी शक्ति के स्वरूप के आदर करते है और समय-समय पर संहार के लिए देवी की स्तुति करते है, फिर क्यों इस समाज में नारी को असुरक्षा का भाव मिलता है। जैसे ही एक बेटी का जन्म होता है तो उसकी माँ उसकी सुरक्षा, विवाह को लेकर सदैव चिंतित रहती है।हमें आने वाले समय में स्त्री सम्मान और उनकी सुरक्षा के लिए एक नवीन समाज का सृजन करना होगा। हमें नारी की उत्कंठा, संत्रास और घुटन को समाप्त करना होगा। विवाह के समय भी नारी का इतना मूल्यांकन होता है जिसमें उसके गुण नगण्य हो जाते है। प्रत्येक कमी के लिए वह स्वयं को कोसती है। अर्थ से रिश्ते का मूल्यांकन होता है। विवाह के पश्चात तो वह स्वहित और स्वयं के लिए जीना ही भूल जाती है। हमें प्रत्येक नारी के गुणों का सम्मान और आदर करना चाहिए। नवरात्रि केवल नौ दिन देवी के विभिन्न रूपों को स्मरण के लिए नहीं प्रेरित करती वह तो सदैव मन में आदर और सम्मान भाव जगाने की याद दिलाती है। हम नवरात्रि के दिनों में नवदुर्गा स्वरूप कन्याओं के पैर पखारते है, उन्हें स्वादिष्ट भोजन खिलते है। सामर्थ्य अनुसार उपहार प्रदान करते है, उनसे आशीष मांगते है। पर यह समाज अपनी संकुचित सोच के कारण उन्हें खुलकर जीने से रोकता है। उनका नारी होना कई बार उन्हें बेड़ियों में जकड़ता है। यदि एक पुरुष आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में अपनी जिम्मेदारियों को भूल जाए तो समाज कभी उनके सामने प्रश्नचिन्ह नहीं लगाएगा, इसके विपरीत यदि कोई स्त्री आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करें तो समाज उन्हें कलंकित करने की कोशिश करेगा। हम नारी के लिए उदार सोच क्यों नहीं अपनाते, क्यों हम नारी का मखौल बनाने में खुद का कद ऊँचा मानते है। क्यों नारी को सहनशीलता का घूँट पीने को मजबूर करते है। क्यों हमारी नजरे गलत इरादों से उसे देखती है। नवरात्रि में हम भक्ति के दीप के साथ मन की सोच को भी प्रकाशित करें और नारी सम्मान के लिए नवीन संकल्प ले कि हम नारी की उन्नति में भी उदार भाव अपनाएँगे और उसकी असुरक्षा के भाव को समाप्त करने का प्रयास करेंगे।
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*
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