छटपटाहट के बाद ही मिलते हैं बांके बिहारी के दर्शन:शंकराचार्य
कन्नौज ब्यूरो पवन श्रीवास्तव के साथ प्रिंस श्रीवास्तव
हिंदुस्तान न्यूज एक्सप्रेस कन्नौज संवाददाता।मध्य प्रदेश भानपुरा पीठ के शंकराचार्य श्री स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने तलैया चौकी के सामने श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कहा कि कमल नयन भगवान के लिए अपना मन दर्शन को छटपटाये और दुनिया छूटे लेकिन भगवान न छूटे तभी बांके बिहारी के दर्शन का आनंद आता है क्योंकि भगवान आनंद स्वरूप हैं।बांके बिहारी के दर्शन जब प्राप्त होते हैं तो आनंद की अनुभूति होती है। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव आज धूमधाम से मनाया गया।इस दौरान शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने कहा कि जिस तरह पक्षियों के पंखहीन बच्चे तथा भूखे बछड़े अपनी मां की सदा बाट जोहा करते हैं तथा दूध पीने के लिए आतुर रहते हैं।जैसे वियोगिनी पत्नी अपने प्रवासी पति से मिलने के लिए छटपटाती रहती है वैसे ही कमल नयन भगवान के लिए आपका मन दर्शन को छट पटाए तभी परमात्मा के दर्शन होते है। जब मन व्याकुल हो जाए तो समझना प्रभु की प्राप्ति हो गई। बांके बिहारी के दर्शनों से आनंद की अनुभूति होती है।भक्तो के लिए भगवान अवतार लेते हैं।श्रीं शंकराचार्य ने कहा कि संसार की सभी वस्तु,पदार्थ,धन,स्त्री,पुत्र,परिवार इत्यादि शोकप्रद है।अतैव आत्मकल्याणकारी पुरुष को इन सभी से ममता हटाकर परमार्थ के पथ पर प्रवत्त होना चाहिए।यह शरीर भी अनेक प्रकार के क्लेश प्रदान करने वाला है।एक दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि भ्रंगी के दर से उसी का चिंतन करते करते तदरूप हो जाता है।लोक में यह देखा जाता है कि भ्रंगी नमक कीड़ा किसी छोटे से कीड़े को पकड़कर कहीं से ले आता है और उसे अपने बिल में रखकर निरंतर मन मन की आवाज करता है।भ्रगी की आवाज सुनकर कीड़ा अत्यंत डर जाता है और रात दिन उस धुन तथा भ्रंगी कीड़े का ही चिंतन करता रहता है।कुछ दिनों बाद वह कीड़ा भी भ्रंगी बन जाता है।उसी तरह किसी भी प्रकार से रात दिन श्री भगवान का चिंतन करने वाला जीव श्री भगवान का होकर अंत में भगवत स्वरूप को मुक्तावस्था से प्राप्त कर लेता है।इस रहस्य को समझने की जरूरत है।शंकराचार्य ने कहा कि इत्र की शीशी का ढक्कन सदैव नहीं खोलना चाहिए।यदि खुला रखोगे तो उसकी खुशबू उड़ जायेगी।