फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों की दी गई जानकारी
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | सीएसए के दिन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलित नगर द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन पर ब्लॉक स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है,मृदा के सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि अवशेष जलाने से मृदा के पोषक तत्व जल जाते हैं,मिट्टी की सतह कठोर हो जाती है। इससे मिट्टी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। भूमि की जलधारण क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन करने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है, सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि होती है और जल धारण क्षमता भी बेहतर होती है। केंद्र के प्रभारी डॉ अजय कुमार सिंह ने गेहूं बीज उपचार पर उपयोगी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गेहूं के बीज का उपचार टेबूकोनाजोल 35 मिली/100 किग्रा बीज के अनुसार करें। डॉ. निमिषा अवस्थी ने कहा कि यदि किसान फसल अवशेष को खेत में ही सड़ा देते हैं तो मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। तापमान नियंत्रित रहता है और बीजों के बेहतर जमाव की स्थितियां बनती हैं। इससे पौधों की संख्या और उत्पादन दोनों बढ़ जाते हैं। उन्होंने फसल अवशेष प्रबंधन में उपयोग होने वाले कृषि यंत्रों रोटावेटर, स्ट्रा चॉपर, सुपर सीडर, हैप्पी सीडर और स्ट्रा बेलर के लाभ बताए। उन्होंने कहा कि धान कटाई के बाद अवशेष पर यूरिया छिड़काव या डीकंपोजर के प्रयोग से अवशेष आसानी से सड़ाया जा सकता है।जिससे मिट्टी की भौतिक व रासायनिक गुणवत्ता में सुधार होता है और जैविक तरीके से सब्जी उत्पादन में मदद मिलती है। इस दौरान महेंद्र कुमार त्रिपाठी, शुभम् यादव, रामाश्रय राजपूत किसान आदि उपस्थित रहे।
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