वैश्य समाज के मतदाताओं की संख्या को राजनैतिक साजिश |
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर।।अखिल भारतीय वैश्य महा परिषद युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय गुप्ता एवं वैश्य समाज के उप वर्गों के संगठनों के पदाधिकारियो ने पत्रकार वार्ता में बताया कि आगामी लोकसभा के चुनाव में देश, प्रदेश, व कानपुर लोकसभा में वैश्य समाज के मतदाताओं की संख्या को राजनैतिक साजिश व षड्यंत्र के तहत कम बता कर उनके अस्तित्व को समाप्त करने का कुचक्र रचा जा रहा है। वैश्य समाज को किसी भी सूरत में यह स्वीकार नहीं है। लोकतंत्र में संख्या के बल के आधार पर ही जातियों व समाजों को प्रमुखता व सम्मान प्राप्त होता है। वैश्य समाज के उपवर्गों की संख्या पूरे देश में 300, उत्तर प्रदेश में लगभग 100 व कानपुर में 55 उपवर्गों में फैला हुआ समाज है। जिसकी कुल मतदाताओं में प्रदेश में 18 परसेंट की संख्या है तथा कानपुर के लोकसभा के चुनाव में मूलतः वैश्य समाज के मतदाताओं की संख्या 6 लाख से अधिक होती है। जिसके प्रमाण इस रूप में प्रस्तुत है। कानपुर लोकसभा में वैश्य मतदाताओं की उपवर्गों के हिसाब से संख्या प्रस्तुत है।अग्रवाल समाज 75 हजार मतदाता, ओमर वैश्य समाज एक लाख मतदाता, दोसर वैश्य समाज 50000 मतदाता, मारवाड़ी माहेश्वरी समाज 25000, बाथम वैश्य 7000 मतदाता, जायसवाल 55000, गुलहरे शिवहरे 20000, यज्ञ सैनी हलवाई वैश्य 40000, कसौधन वैश्य 12000, गहोई 10000, महावरे 5000, रौनियार 8000, अयोध्यावासी 40000, बिश्नोई 8000, माथुर वैश्य समाज 25000, अग्रहरि समाज 50000, राजवंशी 5000, खंडेलवाल 5000, रस्तोगी रोहतगी 20000, मैन समाज 50000, पोरवाल 8000, केसरवानी 30000, महाजन 10000, कांदू भुर्जी 15000 मददेशिया वैश्य 20000, कमलापुरी 5000, कसेरा 10000, वाष्णेय 5000 साहू समाज 0000, चौरसिया 30000 और भी अनेक उपवर्ग हजारों की संख्या में है जो वैश्य समाज में । यह सब संख्या आंकड़े सभी वैश्य उपवर्गों द्वारा इक्ट्ठा किए गए। जो प्रमाणित है | अखिल भारतीय वैश्य महा परिषद युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय गुप्ता एवं वैश्य समाज के उप वर्गों के संगठनों के पदाधिकारियो ने पत्रकार वार्ता में बताया कि आगामी लोकसभा के चुनाव में देश, प्रदेश, व कानपुर लोकसभा में वैश्य समाज के मतदाताओं की संख्या को राजनैतिक साजिश व षड्यंत्र के तहत कम बता कर उनके अस्तित्व को समाप्त करने का कुचक्र रचा जा रहा है। वैश्य समाज को किसी भी सूरत में यह स्वीकार नहीं है। लोकतंत्र में संख्या के बल के आधार पर ही जातियों व समाजों को प्रमुखता व सम्मान प्राप्त होता है।
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