किसान उर्वरकों व कीटनाशकों से दूर प्राकृतिक खेती को अपना रहे है।
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। सीएसए के कुलपति डॉ. डीआर सिंह के निर्देशन में विश्वविद्यालय तथा कामधेनु संवर्धन एवं अनुसंधान झांसी के संयुक्त तत्वाधान में बुंदेलखंड के सभी जनपदों में गौआधारित प्राकृतिक खेती के लिए गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाकर कृषकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसी क्रम में गुरुवार को टीम ने जनपद झांसी के गांव पलिंदा, रक्सा, रौनीजा आदि गांवों में सुबह से शाम तक जागरुकता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया।प्रशिक्षण के अवसर पर विश्वविद्यालय के मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने बताया कि किसान अत्यधिक उर्वरकों व अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग व इसके जहरीले दुष्प्रभाव को समझने लगे हैं और प्राकृतिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं। बिना रसायन फसलें जैसे टमाटर,आलू,भिंडी, प्याज,खीरा, कद्दू व अन्य सब्जियों से दोगुना मुनाफा कमाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि समय के साथ किसानों को भी बदलाव करना है। ताकि आमदनी बढ़े। इस अवसर पर श्याम बिहारी गुप्ता ने बताया कि जीवामृत बनाने के लिए 200 लीटर का एक ड्रम लेकर उसमें 180 लीटर पानी, 10 किलो गाय का गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 1 किलो बेसन,1 किलो गुड़ आदि का घोल बनाकर ड्रम में डाल देते हैं। तथा जूट के बोरे से ढककर छायादार स्थान पर रख देते हैं। फिर इसे खेतों में डालते हैं जिससे मृदा की उर्वरता शक्ति बढ़ती है। और मिट्टी नमी संजोए रखती है । जिससे कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस अवसर पर गांवों के कई किसानों ने प्रतिभाग किया।
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