राष्ट्रीयकृत बैंक राष्ट्र की अमूल्य सम्पत्ति - प्रवीण मिश्र |
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | राष्ट्रीयकृत बैंक राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति है। इसके स्वरूप को बचाने में हम अपना सर्वस्व समर्पण करने को तैयार है। उपरोक्त बातें बैंकों के राष्ट्रीयकरण 55वें वर्ष में प्रवेश के शुभ अवसर पर भारतीय स्टेट बैंक अधिकारी संगठन के सभागार में आयोजित एक विचार गोष्ठी में ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉनफेडरेशन के कानपुर सचिव प्रवीण मिश्र ने व्यक्त की। राष्ट्रीयकृत बैंक भारत की आम जनता की बैंक है। वर्ष 1969 में जब पहली बार 14 बैंको का राष्ट्रीयकरण कर आम जनता के लिए बैंक के दरवाजे खोले गए तब से ही देश ने प्रगति के मार्ग पर तेजी से चलना प्रारंभ किया। आज का भारत हर क्षेत्र में विश्व में अग्रणी भूमिका का निर्वाह कर रहा है। जिसमे केवल सरकारी क्षेत्र के बैंको की ही भूमिका रही है। वर्ष 1990 के दशक से भारत में निजी बैंको का प्रसार अवश्य प्रारंभ हुआ परंतु वो बैंक केवल शुद्ध व्यवसायिक कार्यों में ही लिप्त रहते है। जबकि राष्ट्रीयकृत बैंक सुदूर ग्रामीण अंचलों सहित भारत के गरीबों के जीवन स्तर को उठाने में कारगर साबित हुई। चाहें जनधन के खाते खोलने हो, रेहड़ी वालों को छोटे _छोटे ऋण देना में ,नए उद्योगों के लिए,मुद्रा,किसान क्रेडिट कार्ड व अन्य योजनाओं के माध्यम भारत के विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान देते रहें हैं और ये कार्य निरंतर आगे भी ऐसे ही जारी रहेंगे। कानपुर इकाई के अध्यक्ष अरविंद द्विवेदी ने कहा कि सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों में भरी स्टाफ की कमी के बावजूद भी जनता की सेवा करने में अपना सम्पूर्ण योगदान देते हैं। भारत सरकार का इन बैंको को निजी क्षेत्र में ले जाने के कुत्सित प्रयास को अधिकारी संगठन कभी सफल नहीं होने देगा।
कर्मचारी कल्याण समन्वय समिति के प्रदेश महामंत्री एवं आयकर अधिकारी शरद प्रकाश अग्रवाल ने कहा कि सरकार की दोहरी नीति समझ से परे है एक तरफ सरकारी बैंको के निजीकरण की बात करती है और दूसरी ओर डूबने वाले निजी बैंको का विलय सरकारी क्षेत्र के बैंको में करती है। बैठक में सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों के पंजाब बैंक के राजकुमार,इंडियन बैंक के अंकुर मिश्र,सेंट्रल बैंक के सतेन्द्र त्रिपाठी,राजीव निगम, यूनियन बैंक के कुलवंत,राजेश व संदीप शुक्ला ,मोहित केसरवानी,संचित अग्रवाल , सारांश श्रीवास्तव सहित गणमान्य ग्राहक भी उपस्थित रहे। ग्राहकों ने भी देश में राष्ट्रीयकृत बैंकों की देश की प्रगति में अभूतपूर्व योगदान की प्रशंशा की।