असुरक्षित गर्भपात से बचें जा सकती है जान गर्भपात नियम विरुद्ध न करें:सीएमओ
प्रिंस श्रीवास्तव
हिंदुस्तान न्यूज एक्सप्रेस कन्नौज/फर्रुखाबाद संवाददाता।अनचाहे गर्भ से बचने के लिए कई अस्थायी व स्थायी साधनों की मौजूदगी के बाद भी असुरक्षित गर्भपात की स्थिति बनना मातृ स्वास्थ्य के लिए जोखिम से भरी हो सकता है।यदि किन्हीं कारणों से अनचाहा गर्भ ठहर भी जाता है तो सुरक्षित गर्भपात करवाना ही उचित होता है जिससे महिला की जान को जोखिम से बचाया जा सकता है।इससे मातृ मृत्यु दर में भी कमी लायी जा सकती है।इसके अलावा किशोरावस्था में अनचाहे गर्भ से मुक्ति पाने और सामाजिक उलाहना से बचने के लिए भी किशोरियों को कतई असुरक्षित गर्भपात का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि यह उन्हें शारीरिक व मानसिक दिक्कतों के साथ ही उनकी जान को भी जोखिम में डाल सकता है।महिलाओं और किशोरियों में असुरक्षित गर्भपात के जोखिम को ध्यान में रखते हुए, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी (संशोधित) एक्ट, 2021 को समझने की ज़रुरत है जिनमें समाज और धार्मिक नेता भी शामिल हैं ताकि महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात से बचाया जा सके।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में हर वर्ष कुल गर्भधारण में लगभग आधे गर्भधारण अनचाहे होते हैं। इनमें 10 में से छह अनचाहे गर्भधारण और सभी 10 में से तीन गर्भधारण गर्भपात में समाप्त होते हैं।डब्ल्यूएचओ का साफ़ मानना है कि गर्भपात तभी सुरक्षित हो सकता है जब वह प्रशिक्षित डॉक्टर की मदद से सही तरीके और सही समय पर कराया जाए।अगर गर्भपात सुरक्षित न हो तो ऐसी स्थिति में यह शारीरिक,मानसिक विकार के साथ महिला या किशोरी की मौत का कारण भी बन सकता है।असुरक्षित गर्भपात से होने वाली कुल मौतों में 97 प्रतिशत मौत विकासशील देशों में होती हैं । विकसित देशों में जहाँ एक लाख पर 30 महिलाओं की मृत्यु होती है वहीं विकासशील देशों में 220 महिलाओं की जान चली जाती है। विकासशील देशों में करीब 70 लाख महिलाएं हर साल असुरक्षित गर्भपात के कारण अस्पतालों में भर्ती होती हैं।संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, असुरक्षित गर्भपात भारत में मातृ मृत्यु दर का तीसरा प्रमुख कारण है और असुरक्षित गर्भपात से संबंधित कारणों से हर दिन करीब आठ महिलाओं की मौत हो जाती है।मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.दलवीर सिंह का कहना है असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मातृ मृत्यु को कम करने एवं गर्भपात सेवाओं को बेहतर बनाने और गुणवत्तापूर्ण पहुँच बनाने के उद्देश्य से देश में वर्ष 1971 में चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट या एमटीपी एक्ट) लागू किया गया।यह अधिनियम सुरक्षित गर्भपात सेवा के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है जिससे असुरक्षित गर्भपात को कम किया जा सके।पहले इस अधिनियम के अनुसार भारत में विशेष परिस्थितियों में 20 सप्ताह तक के गर्भ का गर्भपात कराना वैध था लेकिन अब संशोधित अधिनियम (2021) के अनुसार 24 सप्ताह तक के गर्भ का गर्भपात कराना वैध है।सीएमओ के अनुसार 20 वर्ष से कम आयु में गर्भधारण करना किशोरावस्था में गर्भ धारण (टीन एज प्रेग्नेंसी) कहलाता है। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के अनुसार 15 से 19 वर्ष की लगभग तीन प्रतिशत महिलायें सर्वे के समय या तो गर्भवती थीं या माँ बन चुकी थीं। टीन एज प्रेगनेंसी के कारणों में एक कारण तो कम आयु में विवाह है लेकिन कभी - कभी नासमझी के परिणाम स्वरूप यह हो सकता है। ऐसे में किशोरियाँ असुरक्षित गर्भपात को तरजीह देती हैं,जिसमें वह निजी अस्पतालों या अप्रशिक्षित चिकित्सकों के द्वारा यह प्रक्रिया करवाती हैं।प्रदेश में कोम्प्रेहेंसिव एबॉर्शन केयर की सुविधा उपलब्ध की जा रही है जहाँ ज़रुरत पड़ने सुरक्षित गर्भपात करवाया जा सकता है।राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य केंद्रों पर एडोल्सेन्ट फ़्रेंडली क्लिनिक संचालित हैं वहाँ पर काउंसलर इस समस्या का समाधान करते हैं तथा सभी बातें गोपनीय रखी जाती हैं।
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