बिना भाव या अभिलाषा के भोजन नही करना चाहिए: आचार्य आर्दश
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। शास्त्री नगर के श्री रामलला गोपाल मन्दिर में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 21वां वार्षिक श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस कपिलदेव मुनि व बिदुर का प्रसंग व्यास जी द्वारा भक्तो को श्रवण कराया गया। श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस कथा वाचक आचार्य आर्दश जी महाराज ने बताया कि कपिल मुनि ने सांख्य योग की रचना की थी और साख्ंय प्रवर्तक भी थे। उन्होंने कथा में बताया कि मनु की तीसरी पुत्री देहुती का विवाह कर्दम मुनी के साथ हुआ था जिन्होंने 16 हजार वर्ष तक पत्नी प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था। उनके तप से प्रसन्न होकर जब भगवान श्री नारायण उन्हें वरदान देने गए तो उनको देखकर श्रीनारायण के नेत्रो में अश्रु भर आए जो कि आगे चल कर बिन्दु सरोवर के नाम से विख्यात हुआ। बिदुर प्रसंग के बारे में उन्होंने बताया कि भगवान श्री कृश्ण जब दुर्योधन के यहां पहुंचे तो उन्होंने श्रीकृश्ण से भोजन करने को कहा,लेकिन भगवान ने कहा जहां भाव और भोजन की अभिलाशा न हो वहां पर भोजन नही करना चाहिए। क्यों कि बिना मान अमृत पियो राहु शीश कटायो। अतः जहां भाव नही वहां सब व्यर्थ है और उन्होंने भाव पर ही बल दिया। कथा के दौरान मुख्य रूप से मन्दिर के महन्त 108 श्री बलरामदास जी महाराज एवं मन्दिर के सदस्य महेश श्रीवास्तव, राम कुमार अवस्थी, राम चन्द्र शुक्ल पूर्व उपनिरीक्षक, सी.पी.पाठक, देवेन्द्र अग्निहोत्री , हरी शंकर शर्मा समेत तमाम सहयोगी सदस्यगण मौजूद रहे।
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