व्यक्तित्व निर्माण में वैदिक दर्शन की भूमिका
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर नगर,डी जी पी जी कॉलेज के दर्शनशास्त्र द्वारा एक दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना से आरम्भ हुआ।अतिथियों का स्वागत प्राचार्या द्वारा हुआ आपने अवगत कराया कि ज्ञान, शिक्षा मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैशिक्षा ज्ञान है और वह मनुष्य का तीसरा नेत्र है। दर्शन शिक्षा के द्वारा समस्त मानव जीवन का विकास संभव है। शिक्षा से व्यक्तित्व का विकास होता है तथा मानव जीवन की सत्यताओं से परिचित होता है।कहा गया कि मूल्यों से ही हम अपने संस्कार अपने वैदिक उपनिषद् आदि से स्वस्थ समाज को विकसित कर सकते है आज का नौजवान अपने वैदिक अचार विचार संस्कार को भूल कर पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हो कर भटक रहा है ,हमारा सबका शिक्षक होने के नाते यह कर्तव्य है कि नवजवानों को सजग करे और स्वस्थ राष्ट्र को विकसित करने में अपना सहयोग करे। मुख्य वक्ता ने अवगत कराया कि व्यक्ति के चरित्र का विकास करना,बाहरी अनुशासन के साथ-साथ आंतरिक अनुशासन को महत्व देना,जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करना,आंतरिक जगत का विकास करना,
वैदिक साहित्य तथा कर्मकांडो ज्ञान के अथाह सागर को और आध्यात्मिक रहस्यों की सांस्कृतिक निधि को अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करनावैदिककालीन शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य है वैदिक काल में गुरु और शिष्य के मध्य विशेष प्रकार के संबंध थे जोकि अत्यंत मधुर, आत्मीय एवं अनुकरणीय थे। वैदिक काल में गुरु और शिष्य के मध्य भरोसे और जिम्मेदारी के संबंध हुआ करते थे। गुरु शिष्यों के साथ पुत्रवतभावना से व्यवहार करते थे। और शिष्य भी गुरु को पिता तुल्य मानकर उनकी सभी आज्ञाओ का पालन करते थे। प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, त्याग, समर्पण तथा श्रद्धा का यह वातावरण उस समय की शिक्षा के महत्व को और अधिक बढ़ा रहा था।संगोष्ठी को सफल बनाने में कला संकाय की सभी प्रवक्ताओं का विशेष सहयोग रहा।२०० से अधिक छात्राओं ने की सहभागिता ।