श्वसन रोग चिकित्सा में डॉ. एस. के. कटियार के समर्पित उत्कृष्टता के 50 वर्ष किए पूरे
U- टीबी और पल्मोनरी केयर की समर्पित सेवाओं की मनाई गई स्वर्ण जयंती
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। आर्य नगर स्थित गैंजेस क्लब में प्रख्यात पल्मोनोलॉजिस्ट, शिक्षाविद्, और श्वसन चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी डॉ. एस.के. कटियार अपने निरंतर समर्पण और उत्कृष्ट योगदान के स्वर्ण जयंती वर्ष को गर्वपूर्वक मनाया।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर के पूर्व छात्र डॉ. कटियार ने 1965 में चिकित्सा शिक्षा आरंभ की और यहीं से एमबीबीएस, डीटीसीडी एवं एमडी (ट्यबोक्लोसेस एण्ड रेस्पेरेटरी डीसीज ) की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने 31 मई 1975 अपरान्ह में टीबी एवं श्वसन रोग विभाग में शिक्षक के रूप में कार्यभार ग्रहण किया और फिर लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर, एवं विभागाध्यक्ष के रूप में सेवा दी। वे प्रॉक्टर, प्राचार्य और डीन, तथा एलएलआर एवं संबद्ध चिकित्सालयों के सुपरिनटेन्डेन्ट-इन-चीफ के रूप में भी कार्यरत रहे। वह अपनी तीन दशकों से भी अधिक की विशिष्ट शैक्षणिक यात्रा के उपरांत फरवरी 2008 में सेवानिवृत्त हुए। अपनी इस यात्रा के स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर डॉ एस.के. कटियार ने टीबी रोग के बारे में जानकारी देते हुए पत्रकारो को बताया कि यी मुख्यतः दो प्रकार की होती है। पहली वह जो चेस्ट में इंफेक्शन के कारण ट्यूबोक्लोसेस व निमोनिया जैसी बीमाररियां होती है तथा दूसरी बीमारी सांस की है जिसमें सीओपीडी होता है जो आगे चल कर लंग्स कैंसर में परिवर्तित हो जाती है। उन्होंने बताया कि टीबी जैसी बीमारी को नियंत्रण करने का प्रयास किया जा रहा है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाये तो इसमें रजिस्टेंस पैदा हो जाते है जो कि आम तौर पर लोगो को लिए समस्या बनती जा रही है। प्रतिवर्ष 27 लाख नये रोगी टीबी की बीमारी से ग्रस्ति हो रहे है जिनमें दो से ढ़ाई लाख रोगियो की मृत्यु हो रही है। इस बीमारी में दवाओ का असर कम होता है। उन्होंने बताया कि प्रयास ऐसा हो कि मरीज का पूरा इलाज हो। अक्सर मरीज बीच में ही इलाज छोड देता है जिससे यह बीमारी पुनः जौट आती है। उन्होंने सांस की बीमारी का जिक्र करते हुए बताया कि यह बीमारी कंट्रोल की जा सकती है। खांसी होने पर साधारण व घरूले इलाज किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रो में अशिक्षित डॉक्टर्स के कारण बीमारी बढ़ जाती है। उसके बाद जब वह शहर के डॉक्टरो की तरफ रूख करते है तब तक बीमारी काफी ज्यादा बढ़ चुकी होती है। जागरूकता और पूरा इलाज ही इस बीमारी से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। हाल के वर्षों में उनके सुपुत्र डॉ. संदीप कटियार भी उनसे जुड़ गए हैं। उन्होंने भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों से एमबीबीएस एवं डी.एन.बी की उपाधियाँ प्राप्त की तथा यूरोपियन डिप्लोमा इन रेसपेटरी मेडिसिन भी प्राप्त किया। मेडिकल थोराकोस्कोपी में वह 2000 से अधिक प्रक्रियाएं कर चुके हैं, जो कि अपने आप में एक कीर्तिमान है तथा वह एक राष्ट्र स्तरीय प्रशिक्षक के रूप में डॉक्टरों को देश के विभिन्न भागों में प्रशिक्षित कर रहे हैं। कानपुर, उत्तर प्रदेश तथा देश के अन्य क्षेत्रों में सेवा के 50 वर्षों के अवसर पर यह स्वर्ण जयंती चिकित्सा क्षेत्र में उनके समर्पण, शिक्षण, अनुसंधान और करुणामय चिकित्सा सेवा की अनुपम विरासत का प्रतीक है।
डॉ. कटियार सामज हित में दे रहे है यह सेवाएं
डॉ. कटियार, एम.डी., डी.टी.सी.डी. और डी.एन.बी. परीक्षाओं के परीक्षक भी रहे हैं और उनके अनेक विद्यार्थी देश-विदेश में प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं। उन्होंने समाज सेवा के अंतर्गत कई मानवीय परियोजनाओं में सक्रिय भूमिका निभाई है।
वर्ष 1975 में अपनी क्लिनिकल प्रैक्टिस प्रारंभ करने के बाद, उनका केंद्र आज एक प्रमुख श्वसन चिकित्सा केंद्र (पॉलमोनरी केयर सेंटर) बन चुका है। यहाँ उच्च स्तरीय रेडियोलॉजी, एडवांस पल्मोनरी फंक्शन टेस्टिंग (पीएफटीएस) ऑडियोमेट्री, ईसीजी, ब्रोंकोस्कोपी (टीबीएलबी/टीबीएनए सहित).सी.टी-गाइडेड बॉयोप्सी. मेडिकल थोराकोस्कोपी आदि की प्रमुख सुविधाएँ उपलब्ध है। इंटरवेशनेलन इन पेशेंट और क्रिटिक्ल सेवाएं अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल से प्रदान की जा रही है। फार्मेसी एवं आउटसोर्स लेबोरेटरी सेवाएं भी केन्द्र पर उपलब्ध हैं। यह केंद्र क्लिनिकल रिसर्च में भी अग्रणी रहा है जैसे कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ड्रग ट्रायल्स (जिसमें यह राष्ट्रीय स्तर पर चौथे स्थान पर रहा), आई.आई.टी.. कानपुर तथा अन्य संस्थानों के साथ सहयोग कर शोध कार्य सम्पन्न किये।