गंगा मेला' में खूब उड़ा गुलाल जेट मशीन से रंगों की बौछार, तिरंगा फहराकर भैंसा ठेला निकाला
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। शनिवार को अनुराधा नक्षत्र पर शहर में गंगा मेला की धूम रही। रंगों का ऐतिहासिक ठेला निकाला गया। जेट मशीन लगाकर लोगों पर रंगों की बौछार और गुलाल-अबीर उड़ाया गया। जगह-जगह डीजे सिस्टम लगाकर लोग झूमते नाचते ऐतिहासिक मेलें में रंगों से सराबोर रहे।
शहर के लोगों ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1842 णें रंगों को हथियार बनाकर पाँच दिनों तक लड़ाई लड़ी। तब से लेकर आज तक रोहिणी नक्षत्र के दिन शहर में राष्ट्रगान और तिरंगा फहराने के बाद गंगा मेला महोत्सव की शुरुआत होती है। सुबह 9.30 बजे हटिया रज्जन बाबू पार्क में हुरियारे जुटे। सबसे पहले राष्ट्रगान गाकर क्रांतिवीरों को नमन किया गया। राष्ट्रीय ध्वज को सैल्यूट करने के बाद होली की मस्ती शुरू हो गई। इसके बाद पूरे शहर में रंगों का भैंसा ठेला निकला जा रहा है। होरियारे भैंसा ठेला, ट्रैक्टर-ट्राली, टेम्पो और ऊंट पर सवार होकर रंग बरसाते निकले। रंग का ठेला हटिया, गया प्रसाद लेन, मूलगंज, शिवाला, रामनारायण बाजार चौराहा, कमला टॉवर, चटाई मोहाल, सिरकी मोहाल, बिरहाना रोड, नयागंज, जनरलगंज होते हुए हटिया लौटता है।
हटिया के रहने वाले और गंगा मेला के आयोजक ज्ञानेंद्र विश्नोई ने बताया1942 में अंग्रेजों ने होली खेलने से मना कर दिया था। बावजूद, इसके लोगों ने होली खेली। इसके विरोध में अंग्रेजों ने 47 लोगों को जेल में बंद कर दिया था। इसमें क्रांतिकारी नौजवान स्व. गुलाब चन्द्र सेठ, बुद्धलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, विश्वनाथ टंडन, हमीद खान, गिरिधर शर्मा आदि को गिरफ्तार किया गया।गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर के लोग एकजुट होकर
अंग्रेजी सरकार के खिलाफ उतर आए और 5 दिनों तक
होली का रंग लगाकर हटिया में प्रदर्शन किया। गिरफ्तारी केविरोध में कानपुर के सभी बाजार बंद कर दिए गए। मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता ने जहां अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। हटिया बाजार में मौजूद उस मोहल्ले के सौ से ज्यादा घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया। मोहल्ले की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे हटिया पार्क में ही धरने पर बैठ गए। पूरे शहर की जनता ने अपने चेहरे से रंग नहीं उतारे। यूं ही लोग घूमते रहे। इस आंदोलन की आंच दो दिन में ही दिल्ली तक पहुंच गई। जिसके बाद पं. नेहरू और गांधी ने इनके आंदोलन का समर्थन कर दिया था। अंग्रेजी हुकूमत को पीछे हटना पड़ा। इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते हैं कि गंगा मेला पर गीतों में भी अंग्रेज निशाने पर रहे। होली गीतों के संकलन की पंक्तियां सीधे अंग्रेजों पर निशाना साधती थीं।