लीवर ट्रांसप्लांट के बाद एक नया जीवन: सामान्य जीवन की एक और शुरुआत
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | उत्तर भारत में प्रमुख स्थान रखने वाले प्रत्यारोपण चिकित्सा में अग्रणी, नोएडा स्थित मल्टी स्पेशियलिटी चिकित्सा संस्थान, जेपी हॉस्पिटल ने लीवर प्रत्यारोपण के बाद एक नई शुरुआत के बारे की प्रेसवार्ता । जेपी हॉस्पिटल, नोएडा ने कई लीवर ट्रांसप्लांट करके दुनिया भर में सम्मानजनक स्थान हासिल किया है।सिरोसिस से पीड़ित रोगी केवल कुछ महीनों तक ही जीवित रह सकता है , लेकिन लिवर प्रत्यारोपण के बाद वह सामान्य जीवन जी सकता है। भारत में सिरोसिस के 40% रोगियों का मुख्य ज़िम्मेदार शराब है और दूसरा हेपेटाइटिस-सी से संक्रमण है जो की सबसे आम कारण है।डॉ. के. आर वासुदेवन, डायरेक्टर - लिवर ट्रांसप्लांट , जेपी हॉस्पिटल, नोएडा ने कहा, “क्रोनिक लिवर रोग का सबसे तेजी से बढ़ने वाला कारण फैटी लिवर है। भारत में हर 6 में से 1 व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है। हालाँकि, फैटी लीवर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। फैटी लीवर का इलाज अपनी जीवनशैली में बदलाव करके किया जा सकता है, लेकिन अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह बड़ी बीमारी का रूप ले लेता है। ऐसे में मरीजों के पास लिवर ट्रांसप्लांट कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इस बीमारी से बचने के लिए पौष्टिक आहार खाने के साथ-साथ नियमित व्यायाम भी करना चाहिए। किसी को शराब का सेवन नहीं करना चाहिए और समय पर हेपेटाइटिस का टीका लगवाना चाहिए।डॉ. वासुदेवन,लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन ने कहा, “जब लिवर की बीमारी लाइलाज अवस्था में पहुंच जाती है, तो मरीजों के लिए एकमात्र विकल्प प्रत्यारोपण ही बचता है। सबसे पहले, प्रत्यारोपण के लिए दाता (डोनर) के रूप में परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता दी जाती है। आनुवंशिक (जेनेटिक) अनुकूलता के कारण पारिवारिक दाता के परिणाम बेहतर होते हैं और कानूनी औपचारिकताएं तेजी से पूरी की जा सकती हैं। समान रक्त समूह या O ब्लड ग्रुप के दाता अनुकूल होते है, हालाँकि यदि परिवार में ऐसा दाता उपलब्ध नहीं है, तो दो परिवारों के बीच दाताओं (डोनर्स) की अदला-बदली की प्रक्रिया के माध्यम से लीवर ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। कई मरीज़ों को डोनर तो मिल जाता है लेकिन उनका ब्लड ग्रुप मेल नहीं खाता, ऐसी स्थिति में दोनों के बीच लिवर प्रत्यारोपण "ए.बी.ओ. इंकंपैटिबल विधि" के माध्यम से किया जाता है।प्रथा हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक डॉ. अजीत कुमार रावत ने कहा कि “इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि लीवर एक ऐसा अंग है जो प्रत्यारोपण के बाद फिर से विकसित हो जाता है, एक डोनर अपने लीवर का 70% दान कर सकता है और सर्जरी के बाद प्राप्तकर्ता और दाता दोनों को अपने सामान्य जीवन में वापस जीवन को जी सकते है। सर्जरी के बाद प्राप्तकर्ता आमतौर पर 2 सप्ताह अस्पताल में बिताते हैं, जो उनके स्वास्थ्य की रिकवरी पर निर्भर करता है। इस अवधि के दौरान महत्वपूर्ण संकेतों जैसे लिवर के फंक्शन और प्रतिरक्षादमनकारी (इम्मुनो सप्रेसिव) दवाओं के स्तर की खासतौर पर निगरानी की जाती है।
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