11 मार्च को महामशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाएगी चीता भस्म की होली
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस वाराणसी।सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ, चीता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग जाते है और जहा दुःख व अपनो से बिछडने का संताप देखा जाता था वहां उस दिन शहनाई की मंगल ध्वनि बजती है हर शिवगण अपने-अपने लिए उपयुक्त स्थान खोज कर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अन्तंरआत्मा में उतार कर शिवोहम् होने को अधिर हुए जाता है जब समय आता है बाबा के मध्याह्न स्नान का उस समय मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है हजारों हजार की संख्या में भक्तों का जन सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंच ता हैं
ऐसी मान्यता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं तत्पश्चात सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुन्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और उनके वहां स्नान करने वालों को वह पुन्य बांटते हैं
अंत बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चीता भस्म से होली खेलते है। वर्षों की यह परम्परा अनादि काल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं।इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक काशीपुत्र गुलशन कपूर ने जो पिछले 24 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक जन सहयोग से पहुंचाया है।
गुलशन कपूर ने इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा की काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते है और रंग का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है, इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं जैसे देवी, देवता,यछ,गन्धर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच,किन्नर, दृश्य, अदृश्य, शक्तियाँ जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है। लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनो की खुसियों का ध्यान नहीं देते अंत सब का बेडा पार लगाने वाले शिवशंकर उन सभी के साथ चीता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और आज से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।चुकी इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चीताओ के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं।
और इस अद्भुत,अद्वितीय,अकल्पनीय होली को देखकर,खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्म शांत करते हैं।महाश्मशान नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष चंद्रिका प्रसाद गुप्ता उर्फ चैनु साव ने बताया कि रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन बाबा मसाननाथ के दर्शन-पूजन और उन्हें गुलाल अर्पित करने की परंपरा है। मंदिर के अंदर ही बाबा के साथ होली खेली जाती थी। इस होली का स्वरूप बेहद सौम्य और सुंदर हुआ करता था।
2012 में इसे कुछ बाहरी तथाकथित लोगों ने मंदिर की चौखट के बाहर शुरू कर दिया। इस पारंपरिक आयोजन को उन्होंने इवेंट का रूप दे दिया। पिछले साल तो मणिकर्णिका तीर्थ पर मसान की होली के नाम पर जो कुछ हुआ वह निंदनीय है। इसे देखते हुए ही निर्णय लिया गया है कि इस बार हम लोग मंदिर की चौखट के अंदर ही मसान की होली खेलेंगे।
उपाध्यक्ष संजय प्रसाद गुप्ता ने बताया कि इस बार मसान की होली मसाननाथ मंदिर के अंदर ही होगी। अध्यक्ष का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण वह इस बार आयोजन में शामिल नहीं होंगे।उन्होंने कहा कि मसान की होली के नाम पर अब इतनी ज्यादा भीड़ हो गई है कि लोगों ने इसे इवेंट बना दिया है। लोग नशा करके इस आयोजन में शामिल होते हैं।