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हम वह हैं जिसकी पहचान गात्र(शरीर)से नहीं अपितु गोत्र(गोरक्षाव्रत)से है
Updated: 3/30/2025 10:57:00 PM By Reporter- praduman panday

हम वह हैं जिसकी पहचान गात्र(शरीर)से नहीं अपितु गोत्र(गोरक्षाव्रत)से है
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस वाराणसी।चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार दिनांक 30 मार्च 2025 ,श्रीकाशी ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य ‘स्वामिश्रीः’ अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘1008’ का विश्व के धार्मिकों के नाम ( 1955885126वें) नव संवत्सर पर 
*शिव-सन्देश*
प्रिय धार्मिको !!!
आप सबको वर्तमान सृष्टि के 1 अरब 95 करोड 58 लाख 85 हजार 126 वें वर्षारम्भ की अनेकानेक शुभकामनायें और शुभाशीर्वाद ।
यह गिनती हमें परम्परा से मिली है जिसे हम सृष्टि के पहले दिन से प्रतिदिन किये जाने वाले अपने प्रत्येक महत्त्वपूर्ण कार्य के आरंभ में किये जाने वाले संकल्प के माध्यम से ताजा रखते आये हैं। यहां ज्ञातव्य है कि पहला संकल्प स्वयं ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना का आरंभ करते हुये लिया था।
चैत्रे मासि जगद्ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।
शुक्ले पक्षे समग्रे तु तथा सूर्योदये सति ॥
यह सत्य सनातन धर्म है जो सृष्टि के आरंभ से आज इतने वर्ष बीत जाने पर भी जीवमात्र के कल्याण के लिये जागृत और प्रवहमान है।हमें गर्व है कि हम उसी परमधर्म के पालक अनुयायी हैं, अतः परमधार्मिक हैं।वैसे तो वर्तमान विश्व में धार्मिक होना प्रतिष्ठा का विषय नहीं रहा है क्योंकि यह समय धर्म की अपेक्षा विज्ञान का माना जा रहा है और लोगों में यह धारणा भर दी गई है कि धार्मिक होना वैज्ञानिक चिन्तना से परे होकर अन्धपरम्परा का निर्वाहक होना है । 
प्रायः ऐसा हो भी रहा है कि धर्म के नाम पर संगठित समूह अपने आध्यात्मिक उन्नयन के स्थान पर गोलबन्दी करते हुये सामाजिक संगठन अथवा भौतिक बल अर्थात् राजनैतिक सत्ता की प्राप्ति का प्रयास कर रहे हैं ।जब से किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा अथवा उसके नाम पर धर्म के समूह संगठित हुये हैं तब से ही यह समस्या बढी है और धर्म क्रमशः पीछे छूटता गया है और गिरोहबन्दी तेज होती गई है।हमारा यह मानना है कि धर्म के क्षेत्र में धर्मोपदेष्टा का महत्त्व तो है पर जब हम उस उपदेष्टा को धर्म के शाश्वत मूल्यों के ऊपर रख उसका अन्धानुकरण आरम्भ कर देते हैं तो अनर्थ वहीं से आरम्भ हो जाता है और उसी दिशा में आगे बढते रहने से तो प्रायः कुछ ही दिनों में वह अनर्थ महान् अर्थात् भयंकर हो जाता है। इसलिये एक सच्चा सनातनी या परमधार्मिक हर उपदेष्टा का आदर तो करता है पर किसी व्यक्ति विशेष से बंधता नहीं है और धर्म के शाश्वत मूल्यों को अपने जीवन में समाहित कर अपना आध्यात्मिक उन्नयन कर लेता है।इतिहास का अनुशीलन करने पर पता चलता है कि यह अनर्थ परम्परा कुछ हजार वर्षों से चली है। और जब से चली है तब से ही धर्म शब्द का माहात्म्य निरंतर घटता गया है और आज धार्मिक होना आधुनिक समाज में प्रगतिशीलता का बाधक और पिछडेपन का बोधक हो गया है।इसे ऐसे समझें कि अम्बेडकर के पहले नवबौद्ध नहीं थे ।दस गुरुओं के पहले सिख नहीं थे। मोहम्मद पैगम्बर के पहले मुस्लिम नहीं थे। ईसामसीह के पहले ईसाई नहीं थे। पैगंबर जरथुस्त्र के पहले पारसी नहीं थे। पैगंबर अब्राहम के पहले यहूदी नहीं थे ।ऋषभदेव के पहले जैन नहीं थे। सिद्धार्थ गौतम के पहले बौद्ध नहीं थे। इसी तरह अपने-अपने संस्थापकों के पहले उन-उन का मत नहीं था । पर सत्य सनातन धर्म सदा से था । आज धर्म की जो हानि हो रही वह इन्हीं तथाकथित धर्मसंस्थापकों के कारण हो रही है क्योंकि तत्तद्धर्मानुयायीजन अपने-अपने उपदेष्टाओं के पदचिन्हों को ही पकडकर उसे ही धर्म मानकर बाकियों से लडने में अपनी ऊर्जा को जाया कर रहे हैं जिसके कारण धर्म का वास्तविक तत्त्व उनकी पकड से छूट रहा है।इसलिये हमारा पहला संदेश आप सबके लिये है कि धार्मिक बनना है तो किसी उपदेष्टा में ही उलझकर मत रह जाइये अपितु सत्य शाश्वत धर्म के मर्म को पकडिये और उसे अपने जीवन में उतारिये ताकि आपका यह मानव जीवन धन्य बने।
यह गंभीरता से समझने की बात है कि अब उनका-उनका समूह है और वे उनके-उनके धर्म को अपनाकर अपना आध्यात्मिक उन्नयन करने की अपेक्षा अपनी संख्या के बल से राजनैतिक आकांक्षा से आगे बढ रहे हैं और उनका संवर्धन भी उनके आध्यात्मिक गुरुओं की अपेक्षा उनके राजनैतिक प्रमुख ही कर रहे हैं । इसीलिये आज पूरी दुनियां में यह होड है कि किस तथाकथित धर्म को मानने वाले समूह की कितने देशों में सरकारें हैं और कितने और देशों में अपनी सरकार बनाने की दिशा में वे कितने आगे बढ रहे हैं । हिन्दूराष्ट्र की बात पर भी इसी होड का प्रभाव है। हमारा मानना है कि कोई राष्ट्र हिन्दूराष्ट्र बने इसकी अपेक्षा हर हिन्दू राष्ट्र बने 
तो यह बडी सफलता होगी। हमारी पहचान ऐसी हो कि हम जहां हों वहीं हिन्दू राष्ट्र दिखाई देने लगे ।
याद रखिये कि आप कौन हैं? अपनी पहचान को साफ रखिये। जितनी साफ आपकी पहचान होगी उतनी ही सरलता आपके जीवन में होगी। यदि आप उपदेष्टाओं से जुडकर अपनी धार्मिक पहचान सुस्थिर करेंगे तो आपको बाकी उपदेष्टाओं से जुडी पहचान वालों से संघर्ष को भी अपने जीवन में सम्मिलित करना होगा। यह अतिरिक्त भार आपको निश्चित छकायेगा और थकायेगा भी ।इसलिये हिन्दू, यहूदी, पारसी, जैन, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम बनने की अपेक्षा धार्मिक बनिये । विशुद्ध धार्मिक, परमधार्मिक। याद रखिये । यदि आप धार्मिक नहीं बने तो ये सब बनने का कोई अर्थ नहीं। सनातन धर्म में धर्म के दो रूप हैं — सामान्य और विशेष। जिसमें सामान्य धर्म नहीं उसमें विशेष धर्म नहीं ठहरते ।अतः हर धार्मिक में सामान्य धर्मों का होना अनिवार्य है ।
इसलिये इस वर्ष हम पूरे विश्व को सामान्य धर्मों की शिक्षा देने का प्रयास करेंगे और इसी माध्यम से परमधार्मिकता की ओर लोगों को ले चलने का प्रयास करेंगे ।
_हमारी वार्षिक योजना_
विगत वर्ष जो लक्ष्य हमने रखे थे श्रीगुरुमहाराज और भगवती की कृपा से उसमें लगभग सफल रहे हैं। 
इस संवत्सर हमने तैंतीस करोड लोगों से सम्पर्क कर उनसे संवाद स्थापित करने का लक्ष्य रखा है जिसे श्रीशंकराचार्य  तकनीकी और जीवंत धर्मदूतों के माध्यम से पूरा करना चाहेंगे। इस संवाद में धर्म के सभी विषय सम्मिलित हैं जिनमें से गोकुल, गुरुकुल और सत्कुल मुख्य होंगे।
_हमारी गोनीति_
अब जबकि देश के किसी भी राजनैतिक दल ने गोरक्षा की शपथ बार-बार समय देने पर भी उद्घोषित नहीं की है अतः इसके साथ ही साथ गोप्रतिष्ठा आन्दोलन को आगे बढाते हुये— ‘तैंतीस कोटि गौमतदाता 
तीन लाख श्रीरामाधाम ।
कुछ हजार जो बूचडखाने 
सुधरें, तो हो गौ का काम’ के लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयास आरंभ कर दिये जायेंगे।
_वाराणसी होगा पायलट जिला_
गोमतदाता संकल्प, रामा गौ की पहचान सहित रामाधाम निर्माण और बूचडखाना सुधार कार्यक्रम का पाइलट जिला वाराणसी होगा जिसमें आज से ही कार्य आरंभ कर दिया जायेगा ।
_वर्षफल_
सिद्धार्थ नामक इस संवत्सर में प्रजा ज्ञान वैराग्य से युक्त होगी।सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रसन्नता रहेगी।अच्छी वर्षा होने से कृषिकार्य में लाभ होगा।शासकवर्ग और प्रजा दोनों सुखी रहेंगे।कहा है—
तोयपूर्णो भवेन्मेघो बहुसस्या वसुन्धरा ।सुखिनः पार्थिवाः सर्वे सिद्धार्थे नाम्नि वत्सरे । अस्मिन् हि वत्सरे भूयो ज्ञानवैराग्य युक्प्रजाः ।सकला वसुधा भाति बहु सस्यार्घवृष्टिभिः ॥ इसी क्रम में आज हमने परम्परानुसार काशी के शंकराचार्यघाट पर सनातनी पंचांग का विमोचन किया है और मठ भवन पर धर्मध्वज भी फहराई है ।यही नहीं श्रीगणेशाम्बिका तथा संवत्सर के राजा श्रीसूर्य के पूजन पुरस्सर ब्रह्मा जी की पूजा कर वर्ष की सफलता का —
‘भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्षं क्षेममिहास्तु मे। संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः’ कहकर आशीर्वाद भी मांगा है और नीम के पत्ते के साथ यथोक्त प्रसाद भी बांटा है।
_आज की हमारी घोषणा_
हम परमाराध्य परमधर्माधीश के रूप में परमधर्मसंसद् 1008 की ओर से यह घोषित करते हैं कि विक्रम संवत् भारत का संवैधानिक संवत्सर है। इसमें भारत का संविधान ही प्रमाण है जिसकी उद्घोषणा में विक्रम संवत् का प्रयोग किया गया है। 
*प्रातर्मंगलम् का वार्षिकोत्सव सम्पन्न हुआ* 
इस कार्यक्रम के माध्यम से अनेकों वर्षों से काशी के श्रीशंकराचार्य घाट पर योगाभ्यासियों को योग, आसन, प्राणायाम और गणेश वन्दना, सूर्मनमस्कार, शिव परिक्रमा, विष्णु ध्यान और गंगा आरती के माध्यम से पंचदेवोपासना के संस्कार के साथ उत्तम स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाती है , काशी के घाट पर योगाभ्यास की संस्कृति का विकास इसी शंकराचार्य घाट पर सबसे पहले हुआ ।
*सनातनी पंचांग सहित अनेकों साहित्य का विमोचन सम्पन्न हुआ*भारत वर्ष सहित समस्त विश्व में भारतीय मान्यता के अनुसार चलने वाले करोडों आस्तिकों का विगत अनेक वर्षों से काल गणना, व्रत, पर्व, यात्रा , अनुष्ठान तथा समस्त क्रियाकलापों में सहायक ये सनातनी पंचांग जिसे सनातन धर्म के सर्वोच्च चारो शांकर पीठ का शुभाशीर्वाद सदा से प्राप्त है, उसका विमोचन आज पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती '१००८' जी महाराज के करकमलों से सम्पन्न हुआ इस अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागीय आचार्य श्री शत्रुघ्न त्रिपाठी जी , विद्याश्री चैरिटेबल ट्रस्ट के न्यासी श्री अविनाश अन्तेरिया जी, ग्लोरियस एकेडमिक के श्री गिरीशचन्द्र तिवारी जी उपस्थित रहे । ज्योतिर्मठ द्वारा संकलित *परमाराध्य चित्रावली* का विमोचन हुआ इसमें  वर्षभर के चित्र का संक्षिप्त संकलन किया गया है । गंगा औषधी केन्द्र के श्री रवि त्रिवेदी जी रमेश उपाध्याय , अभयशंकर तिवारी जी द्वारा शंकराचार्य जी के करकमलों से *ज्योतिर्मठ दिग्दर्शाका* का विमोचन सम्पन्न हुआ । 
आज के कार्यक्रम में उपस्थित रहे सर्वश्री शारदानन ब्रह्मचारी जी, साध्वी शारदाम्बा देवी जी, साध्वी पूर्णाम्बा देवी जी, स्वामी श्रीनिधिरव्यानन्द सागर , स्वामी अप्रमेयशिवसाक्षात्कृतानन्दगिरि, परमात्मानन्द ब्रह्मचारी, प्रभुप्रभूतानन्द ब्रह्मचारी, स्वयंभवानन्द ब्रह्मचारी, सर्वभूतहृदयानन्द ब्रह्मचारी, संजय पाण्डेय, सौवीर नागर, रंजन शर्मा, शम्भूशरण पाण्डेय, अमित तिवारी, शिवाकान्त मिश्र, ओमप्रकाश पाण्डेय  आदि उपस्थित रहे । 
हर हर महादेव
हम वह हैं जिसकी पहचान गोत्र (शरीर) से नहीं अपितु गोत्र (गोरक्षाव्रत) से है। हम हिन्दू हैं।

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