ऑप्थैल्मिक सोसाइटी द्वारा संभालबाई / काला मोतियाबिंद मूल्यांकन मास्टरक्लास का भव्य आयोजन
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। ऑप्थैल्मिक सोसाइटी द्वारा संभालबाई / काला मोतियाबिंद मूल्यांकन मास्टरक्लास का भव्य आयोजन: नेत्र चिकित्सा की गुणवत्ता को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया गया
कानपुर, भारत — नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के निरंतर प्रयास के तहत, कानपुर ऑप्थैल्मिक सोसाइटी ने संभालबाई रीच आउट प्रोग्राम का सफलतापूर्वक आयोजन 3 अगस्त, 2025 को होटल रीजेंटा, कानपुर में किया। इस मास्टरक्लास में 50 से अधिक नेत्र विशेषज्ञों और चिकित्सा पेशेवरों ने भाग लिया और संभालबाई के निदान एवं प्रबंधन में अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त की, जिससे कानपुर नेत्र चिकित्सा शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा।कार्यक्रम का शुभारंभ अध्यक्ष उत्तर प्रदेश आफ्थेलमिक सोसाइटी डॉक्टर मलय चतुर्वेदी, कार्यक्रम की मुख्य संयोजक प्रोफ़ेसर GSVM मेडिकल कॉलेज तथा ऑफ़िसर इंचार्ज ग्लूकोमा डॉक्टर शालिनी मोहन, अध्यक्ष कानपुर आफ्थेलमिक सोसाइटी डॉक्टर मनीष महिंद्रा, सचिव कानपुर आफ्थेलमिक सोसाइटी डॉक्टर मोहित खत्री विभागाध्यक्ष नेत्र रामा मेडिकल कॉलेज डॉक्टर रुचिका अग्रवाल एवं अन्य वरिष्ठ जनों ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया।प्रमुख विशेषज्ञों द्वारा संचालित इस कार्यक्रम में शैक्षणिक गंभीरता और व्यावहारिक नैदानिक अनुभव का सुंदर समावेश हुआ। मुख्य आकर्षण रहे:डिस्क असेसमेंट मास्टरी: डॉ. मनीष महेन्द्रा (अध्यक्ष, कानपुर ऑप्थैल्मिक सोसाइटी) ने संभालबाई जैसे दिखने वाले डिस्क की पहचान की सूक्ष्मताओं को स्पष्ट किया।डॉ. श्वेता त्रिपाठी (इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल, लखनऊ) ने संभालबाई की निगरानी हेतु उन्नत ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी तकनीकों का प्रदर्शन किया।विज़ुअल फील्ड में त्रुटियाँ: डॉ. रीना शर्मा (उपमा सफाई, इटावा) ने परीक्षण में सामान्य गलतियों को उजागर किया।गोनियोस्कोपी की महत्ता: डॉ. रजत मोहन श्रीवास्तव (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) ने इसके नैदानिक महत्व को रेखांकित किया।दिलचस्प केस डिस्कशन – डॉ. शालिनी मोहन (जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज) ने ने केस-आधारित चर्चा का संचालन कर सिखाया कि क्लीनिक में असल समस्या को कैसे सुलझाया जाए। प्रत्येक सत्र के बाद आयोजित क्विज़ ने सहभागिता को सुनिश्चित किया, जो कि डॉ. नेहा सक्सेना, डॉ. एकता अरोड़ा, डॉ. सौरभ मिस्त्री और डॉ. नम्रता पटेल द्वारा संचालित की गई ।डॉ. मनीष महेन्द्रा (संस्थापक, महेन्द्रा आई इंस्टिट्यूट व वर्तमान अध्यक्ष, कानपुर ऑप्थैल्मिक सोसाइटी) ने कहा, "यह कार्यक्रम हमारी सोसाइटी की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, हर डॉक्टर को काला मोतियाबिंद की सही जानकारी और टूल्स मिलें ताकि वे बेहतर इलाज कर सकें।"
प्रो. डॉ. शालिनी मोहन (कार्यक्रम समन्वयक, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज) ने कहा, "जब हम चिकित्सकों को सटीक उपकरणों से सशक्त करते हैं, तो हम पूरे उत्तर प्रदेश में रोगियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।"
डॉ. मोहित खत्री, सचिव, ने जोड़ा, "जबरदस्त प्रतिक्रिया इस बात का संकेत है कि केंद्रित, प्रभावशाली नेत्र प्रशिक्षण की कितनी आवश्यकता है। यह इस दिशा में हमारा एक और महत्वपूर्ण कदम है।" प्रतिभागियों ने इंटरऐक्टिव सत्रों, प्रोटोकॉल के सरलीकरण और सुव्यवस्था की सराहना की, जिससे चिकित्सकीय अभ्यास और अधिक प्रभावी हो सका। सत्रों का संचालन डॉ. आकाश शर्मा, डॉ. सुकांत पांडेय, डॉ. ईना बुधिराजा, डॉ. आकांक्षा, और डॉ. लोकेश अरोड़ा ने किया।काला मोतियाबिंद आंखों की रोशनी जाने का एक बड़ा कारण है, जिसे वक्त रहते पहचान कर ही रोका जा सकता है। कानपुर ऑप्थैल्मिक सोसाइटी की यह पहल क्षेत्रीय प्रशिक्षण की असमानताओं को दूर करते हुए डॉक्टरों को समय रहते प्रभावी हस्तक्षेप हेतु तैयार कर रही है।50+ प्रतिभागी, जिनमें रेज़िडेंट, सलाहकार और वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ शामिल थे, और 8 विशिष्ट फैकल्टी द्वारा 5+ घंटे की गहन शिक्षा—इस कार्यक्रम की प्रभावशीलता को दर्शाते हैं। कार्यक्रम में साझा किए गए प्रोटोकॉल अब शहर की कई क्लीनिकों में अपनाए जाने की दिशा में अग्रसर हैं।