डॉ परेवज खान के शोध से जा चुकी आंखो की रोशनी मिलेगी वापस
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। भारत में टीबी के मरीजो की संख्या काफी है जिनके इलाज में इथमबुटॉल नाम की दवा चलती है जो कि सभी टीबी मरीजो को दी जाती है। लेकिन इस दवा के ऐसे साइड इफेक्ट देखने को मिले है जिससे टीबी के मरीज की टीबी तो ठीक हो जाती है ,लेकिन उसकी आंखो की रोशनी जाती रहती है। इस तरह टीबी की बीमारी को अधिकांश डाक्टर्स ठीक कर लेते है ,लेकिन आंखो पर पडने वाले दुष्प्रभाव को नही समझ पाते जिसके चलते उन्हें अपनी आंखो की रोशनी से हाथ धोना पडता है। लेकिन जीएसवीएम मेडिकल कालेज के नेत्र रोग विभागध्यक्ष डॉ परवेज खान ने इस पर शोध किया और उसका नतीजा सफल रहा।
डॉ परवेज खान ने बताया कि 4 वर्षो तक शोध करने से पता चला कि जिन मरीजो को आंखो में रोशनी खत्म होने की समस्या हुई उनका पहले टीबी का इलाज चलता रहा है। टीबी तो ठीक हो गई ,लेकिन आंख गवाना पड गया। उन्होंने बताया कि 60 मरीजो पर उन्होंने शोध किया जिनमें 30 मरीजो को बी-12 और बाकी के 30 मरीजो को बी-12 के साथ सिलोस्टाजोल और पेन्ट्राक्सीफाइलिंग जो कि पैरो की नसो के लिए इस्तेमाल की जाती है उन दवाओ को चलाया गया और 6 माह तक उन पर शोध किया गया जिसका परिणाम बेहतर आया। बी-12 उतना प्रभावी नही हुई जितना कि दूसरा कम्पोनेंट काम में आया। उन्होंने बताया कि अधिकांश मरीजो को जब आंख से दिखाई देना बंद हो गया तो मोतियाबिन्दु की बीमारी समझ कर वह आये ,लेकिन परिणमा स्वरूप कुछ और ही निकला। इसमें सबसे पहले नार्मल ग्राफ अगर होता है तो ठीक है ,लेकिन आगे चल कर यही कलर ब्लाइंडनेस , कंट्रास विजन और फिर आंख की रोशनी का चले जाना होता है। उन्होंने बताया कि इसी शोध पर जरनल ऑफ यूरोपियन सोसाइटी ऑफ मेडिसन द्वारा दिल्ली में 3 दिवसीय कांफ्रेस आयोजित किया जा रहा है। यह शोध देश में पहला है और कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कालेज में किया गया है जो कि अपने आप में बहुत ही बडी बात है।