कानो में गूंजा अनचाहा शोर,बुर्जुग ने खुद को गोली मार कर की आत्महत्या
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। टिनिटस नाम की बीमारी ऐसी बीमारी है जो कानों या सिर के अंदर बाहरी शोर के बिना आवाजों को सुनने का एहसास कराती है। इसमें मरीज को घंटी बजने, भिनभिनाने, सीटी बजने, या फुफकारने जैसी आवाजे सुनाई देती है जिससे सुनने की क्षमता में कमी होने लगती है और व्यक्ति इससे डिप्रेशन में चला जाता है। चिकित्सक बताते है कि इस बीमारी के कई लक्षण हो सकते है। जिनमें बाहरी ध्वनि की अनुपस्थिति में इन आवाजों का लगातार या रुक-रुक कर सुनाई देना, आवाजों की तीव्रता और पिच अलग-अलग हो सकती है,शांत वातावरण में इन आवाजों पर ज्यादा ध्यान जाना कारण है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, सुनने की क्षमता कम हो सकती है और नसें सूख सकती हैं, जिससे टिनिटस हो सकता है। इसी बीमारी के चलते नवाबगंज के आजाद नगर में एक ट्रैक्टर सप्लायर 73 वर्षीय सत्येन्द्र कुमार गुप्ता नेे अपनी कनपटी पर रिवाल्वर से गोली मार कर आत्महत्या का प्रयास किया।जीएसवीएम मेडिकल कालेज के नाक, कान गला विशेषज्ञ डॉ निशांत सौरभ सक्सेना ने इस बीमारी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जब नसो में कोई कमजोरी आती है तब ये ट्यूमर के साथ भी हो सकता है ,साथ ही इंफेक्शन भी इसका कारण हो सकता है। उन्होंने बताया कि ब्रेन ट्यूमर में भी ये की बीमारी होती है। इसका बेसिक कारण यह होता है कि शरीर के अन्दर की आवाजे उत्पन्न होती है उसे दिमाग दबा नही पाता है। मास्किंग का एक प्रोसेस होता है जैसे दिल का धड़कना खून का बहना जैसी आवाजे शरीर के अन्दर होती है उसे दिमाग दबा लेता है जो कि हमे सुनाई नही पड़ती है। टिनिटस में शरीर का मैकेनेजम बिगड़ जाता है जिसकी वजह से आवाजे गूंजने लगती है। इसमें सबसे पहले टिनिटस का कारण देखने के लिए ब्रेन से सम्बंधित बीमारियों को भी देखना होता है। इसके लिए मरीज की एमआरआई और सीटी स्कैन और कभी -कभी एंजियोग्राफी भी करानी पड़ती है। अगर उसमे भी टिनिटस का कोई लक्षण नही मिलता है तो फिर उसके इलाज टिनिटस रिट्रेनिंग थेरेपी (टीआरटी थेरेपी) की सलाह दी जाती है जिसमें एक मशीन दी जाती है जो सुनने का काम नही बल्कि जो आवाजे उठती है उसे वह दबाने के लिए होती है ताकि मरीज को अनचाही आवाजे न सुनाई दे। कई बार मरीजो को एंजोरेटिस दी जाती है ताकि मरीज को अनचाही आवाजों से छुटकारा मिल सके। टिनिटस बीमारी से बचाव डॉ निशांत सौरभ सक्सेना ने बताया कि टिनिटस बीमारी से बचाव यही है कि तेज आवाजों से बचना चाहिए है। शुगर , वीपी को नियंत्रित रखना है, खान पान का सही सेवन करना है ताकि नसों पर कोई दबाव न पड़े। शुगर और वीपी की दवा नियमित लेते रहना चाहिए और व्यायाम करना चाहिए। इसके साथ दो तरीके है पल्सेटाइल और नान पल्सेटाइल जो बचपन में भी हो सकता है। जिसमें खून की धमनियों में खून का रिसाव हो जाए या खून का प्रवाह तेज हो जाए उनके यह पाया जाता है। यह 35 से 40 वर्ष की उम्र के बाद ही शुरू होती है।
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