ग्रामीण युवतियों को सशक्त बनाने के लिए अपशिष्ट से हस्तनिर्मित उत्पाद निर्माण कर किया जागरूक
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के संसाधन प्रबंधन एवं उपभोक्ता विज्ञान विभाग द्वारा शुक्रवार को अनूपुर गाँव में अपशिष्ट से हस्तनिर्मित उत्पाद निर्माण एवं पर्यावरण संरक्षण विषय पर एक विशेष ग्रामीण प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।यह कार्यक्रम विभाग की प्रभारी डॉ. रश्मि सिंह के मार्गदर्शन एवं पर्यवेक्षण में संपन्न हुआ। साथ ही के.वी.के. (कृषि विज्ञान केंद्र) दलिपनगर के प्रभारी एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सिंह तथा गृह विज्ञान की वैज्ञानिक डॉ. निमिषा अवस्थि का कार्यक्रम आयोजन में सहयोग रहा। इस अवसर पर विभाग की शिक्षिकाएँ स्वप्निल सिंह और एलेना, बी.एससी. तृतीय वर्ष की छात्रा शाज़िया तथा बीएससी चतुर्थ वर्ष की छात्रा महक सक्रिय रूप से सम्मिलित रहीं।
कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण युवतियों को सशक्त बनाना, पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना तथा अपशिष्ट सामग्री से उपयोगी एवं आय-सृजन करने योग्य उत्पाद बनाना सिखाना था। कार्यक्रम में ग्रामीण युवतियों को सिखाया गया कि घर में उपलब्ध बेकार वस्तुओं जैसे- धागे, रस्सियाँ और प्लास्टिक बोतलों का रचनात्मक उपयोग कर सुंदर हस्तनिर्मित वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं, जिन्हें बेचकर आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकती हैकार्यक्रम के दौरान शाज़िया ने ग्रामीण युवतियों को मैकरेम कला सिखाई —जिसमें धागों की गांठों से सुंदर सजावटी वस्तुएँ बनाई जाती हैं। उन्होंने बताया कि मैकरेम से वॉल हैंगिंग, की-रिंग, पौधों के होल्डर और बैग बनाकरघर बैठे आय अर्जित की जा सकती है।इसके साथ ही महक ने युवतियों को वेस्ट प्लास्टिक बोतलों से सजावटी वस्तुएँ बनाना सिखाया।उन्होंने बताया कि फेंकी जाने वाली बोतलों को डेकोरेटिव बोतल, पेन स्टैंड या पौधारोपण पॉट के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण की रक्षा के साथ आय का स्रोत भी बन सकता है।विभाग की शिक्षिकाएँ *स्वप्निल सिंह* और *एलेना* ने न केवल छात्राओं का मार्गदर्शन किया, बल्कि युवतियों को स्वयं भी समझाया और सिखाया और प्रेरित किया ।डाॅ. रश्मि सिंह का प्रेरणादायक संदेशविभाग की प्रभारी डाॅ. रश्मि सिंह ने कहा पर्यावरण को स्वच्छ रखना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। यदि हम अपशिष्ट वस्तुओं का सही उपयोग करना सीख लें, तो हम न केवल प्रदूषण को कम कर सकते हैं, बल्कि इससे आय-सृजन भी संभव है। महिलाएँ जब ऐसी कलाओं को अपनाती हैं, तो वे आत्मनिर्भर बनकर समाज में उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।ग्रामीण युवतियों की सक्रिय भागीदारी और उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। उन्होंने कहा कि उन्हें यह प्रशिक्षण बहुत पसंद आया और वे आगे भी इससे जुड़कर और अधिक सीखना चाहेंगी। उनके उत्साह और सीखने की ललक ने इस कार्यक्रम को सफल और सार्थक बना दिया।