सुगर फ्री आलू की जैविक खेती से बढ़ेगी किसानों की आय
*परानापट्टी के किसान ने शुरू की शुगर फ्री काले आलू की खेती
*जीवामृत व संजीवक के प्रयोग से बढ़ेगी आलू की गुणवत्ता
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस चिरईगाँव/वाराणसी डायविटीज के मरीजों के लिए शुगर फ्री आलू की खेती से जुड़ी यह खबर काफी उपयोगी हो सकती है।जी हाँ जिन्हें डायविटीज यानि शुगर की बीमारी है उन्हें अब आलू के उपयोग से मुँह नही मोड़ना पड़ेगा। बताते चलें कि कृषि वैज्ञानिकों ने आलू की ऐसी प्रजातियाँ विकसित कर दी हैं जिसका उपयोग डायविटीज के मरीज भी कर सकते हैं।आलू की डीएएस-5 व डीएएस-7 प्रजातियाँ शुगर फ्री आलू की ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनकी खेती वाराणसी जनपद मे की जा सकती है। पिछले वर्ष शुगर फ्री काले आलू का उत्पादन करके क्षेत्र मे हलचल मचा देने वाले चोलापुर ब्लाक के परानापट्टी गाँव के किसान फौजदार यादव कहते हैं कि कृषि विभाग द्वारा संचालित नमामि गंगे योजना से जुड़ने के बाद मैने जीवामृत,संजीवक व कम्पोस्ट के प्रयोग से इस वर्ष शुगर फ्री काले आलू की जैविक खेती शुरू की है जिससे की आलू की गुणवत्ता मे सुधार हो सके।उन्होंने बताया कि
गाढ़े काले रंग के इस आलू का उत्पान सामान्य आलू की अपेक्षा अधिक होता है।जहाँ एक ओर सामान्य प्रजाति के आलू का उत्पादन 200 से 250 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है वहीं दूसरी ओर सुगर फ्री प्रजाति का आलू (डीएएस-5 व डीएएस-7) का उत्पादन 400 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है।
*रोग के प्रति सहनशीलता व अच्छी कीपिंग क्वालिटी--*
उप कृषि निदेशक अखिलेश कुमार सिंह ने बताया कि शुगर फ्री काले आलू की प्रजातियों की कीपिंग क्वालिटी अच्छी होने के कारण इन्हें अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है साथ ही ऐसी प्रजातियों मे झुलसा रोग का प्रकोप बहुत कम होता है।उन्होंने बताया कि कीपिंग क्वालिटी अच्छी व झुलसा रोग के प्रति सहनशीलता अधिक होने के कारण व डायविटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सुगर फ्री आलू की ये नई प्रजातियाँ प्रदेश सरकार द्वारा आगामी 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने के मिशन को सफल बनाने मे सहायक हो सकती हैं।वहीं नमामि गंगे के प्रोजेक्ट हेड स्वामी शरण कुशवाहा का कहना है जैविक विधि से की जा रही शुगर फ्री काले आलू की खेती किसानों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
*चिकित्सकों का है कहना-*
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चिरईगाँव के चिकित्साधिकारी डा. अमित कुमार सिंह ने बताया कि सुगर फ्री काले आलू की प्रजातियों का बैगनी या गाढ़ा नीला रंग एन्थोसाईनिन पिगमेंट के कारण होता है एन्थोसाईनिन का अधिक प्रयोग करने से सुगर लेवल कम होता है।सुगर फ्री आलू की इन प्रजातियों मे जैसे जैसे पिगमेन्टेशन बढ़ता है वैसे वैसे स्टार्च व ग्लूकोज की मात्रा कम होती है यही कारण है कि ऐसी आलू के सेवन की सलाह डायविटीज मरीजों को दी जाती है।
*मात्र एक फीसदी होता है स्टार्च-*
कृषि विज्ञान केन्द्र के अध्यक्ष व वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा.नरेंद्र कुमार रघुवंशी ने बताया कि आलू की नई प्रजातियाँ (डीएएस-5 व डीएएस-7) सुगर फ्री प्रजातियाँ हैं इसलिए डायविटीज मरीजों के लिए वरदान साबित होंगी।सामान्य आलू मे जहाँ स्टार्च की मात्रा जहाँ 6 से 7 फीसदी तक होती है वहीं सुगर फ्री आलू मे स्टार्च की मात्रा महज एक फीसदी ही होती है।इसलिए यह आलू डायविटीज के मरीजों के लिए उपयोगी है क्योंकि स्टार्च ही बाद मे सुगर मे बदलता है ।स्टार्च की मात्रा कम होने के कारण ही सुगर फ्री आलू की संज्ञा दी जाती है।