भूषा टोली चौराहा काली मंदिर में लगा नागपंचमी का भव्य मेला |
- बारिश ने मेले का भव्य रंग किया फेल |
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | हर वर्ष की भांति यूपी किराना सेवा समिति के सामने काली मंदिर में नाग पंचमी के मेले का आयोजन रमेश चन्द्र गुप्ता पूर्व क्षेत्रीय पार्षद बल्ले द्वारा एवं स्थानीय नागरिकों के सहयोग से सावन माह में नागपंचमी के अवसर पर मेले का आयोजन विगत 50 वर्षों से चलता चला आ रहा है | मंदिर की सजावट व मेले की शोभायमान दुकानें, खिलौने व आदि सामानों से सजती है | इस मेले में बच्चे व महिलाएं सबसे ज्यादा लुत्फ उठाते हैं | इस मेले की संख्या लगभग 5000 से 8000 तक पहुंचती है, बच्चे सावन में झूलों का आनंद भी जबर्दस्त उठाते हैं | इस मेले में प्रशासन विगत वर्षों से सहयोग प्रदान करता आया है | मेला कमेटी अध्यक्ष छेदीलाल महामंत्री रिंकल गुप्ता, कोषाध्यक्ष हर्ष तिवारी, पी के शुक्ला व कमेटी के सदस्यों ने प्रशासन का आभार जताया | बताया जाता है, कि प्रतिवर्ष भारत में श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है।आज के दिन विवाहित महिलाएं अपने घरों के मुख्य द्वार पर गोबर या आटे हल्दी के सांप बनाकर उनकी पूजा करती है। वैसे तो नागपंचमी की शुरुआत की विभिन्न कहानियां है पर मुख्यता प्राचीन काल में एक सेठ के परिवार में चार बेटे बहुओं से जुड़ी है जहां सेठ के घर मे मिट्टी की अवस्यकता को पूरा करने के लिए चारो बहुएं अपने खेत मिट्टी लेने जाती है और जब किसी बहू द्वारा खुरपी से मिट्टी खोदते समय सांप निकलने पर जब सांप को मारने लगती है तो सेठ की सबसे छोटी बहू उस सांप को बचा लेती चूंकि छोटी बहू के कोई भाई नहीं था तो वह उसी सांप को अपना भाई मान लेती है और सांप को दूध पिलाती है सांप खुश होकर उसे अपनी बहन मान कर अमूल्य हीरे जवाहरात भेंट स्वरूप देता है उसी समय छोटी बहू को देख बाकी बहुओं व राज्य के हर घर मे सांपो को दूध पिलाने के बाद उनकी पूजा का रिवाज प्रारंभ हुआ धीरे धीरे ये रिवाज सम्पूर्ण भारत मे नागपंचमी त्योहार के रूप मे मनाया जाने लगा उत्तरप्रदेश (यूपी) में इस दिन एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां इस दिन गुड़िया को पीटने की अनूठी परंपरा निभाई जाती है। इस सबंध में इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं, ऐसा माना जाता है। जैसा कि हम सभी ने किसी न किसी को यह कहते हुए कहीं-न-कहीं अवश्य ही सुना होगा कि 'महिलाओं के पेट में बात नहीं पचती' और यही कहावत नागपंचमी के दिन गुड़िया पीटने की परंपरा के पीछे भी है। आप नहीं जानते होंगे कि गुड़िया को पीटना अपने आप में कुछ अनूठा-सा है, लेकिन इसके पीछे की कहानी महिलाओं से जुड़ी होने के कारण नागपंचमी के त्योहार पर उत्तरप्रदेश में गुड़िया पीटने की एक पौराणिक परंपरा चली आ रही है। इस संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। कुछ समय बाद तक्षक की चौथी पीढ़ी की बेटी/कन्या की शादी राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में हुई। जब वह शादी करके ससुराल में आई तो उसने यह राज एक सेविका को बता दिया और उससे कहा कि वह यह बात किसी से न कहें, लेकिन सेविका से रहा नहीं गया और उसने यह बात किसी दूसरी महिला को बता दी। इस तरह बात फैलते-फैलते पूरे नगर में फैल गई। इस बात से तक्षक के राजा को क्रोध आ गया और क्रोधित होकर उसने नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा होने का आदेश देकर कोड़ों से पिटवाकर मरवा दिया। उसके पीछे राजा को इस बात का गुस्सा था कि 'औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती'। माना जाता है कि तभी से गुड़िया पीटने की परंपरा मनाई जा रही है।
नाग पंचमी के दिन प्रत्येक हिन्दू परिवारों मे दूध को सांप देवता के प्रसाद के रूप मे दूध से बने पकवान खाए जाते है।