चिकित्सकों ने जटिल कोरोनरी मामलों के लिए पेश की आधुनिक शॉकवेव आईवीएल तकनीक |
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | चिकित्सा-जगत में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, कानपुर के रीजेंसी हॉस्पिटल ने हाल में एक अभूतपूर्व प्रक्रिया का सफल प्रयोग किया। आधुनिक शॉकवेव इंट्रावैस्कुलर लिथोट्रिप्सी (आईवीएल) तकनीक के प्रयोग से 71 वर्षीय महिला मरीज का सफल इलाज किया गया। महिला को एंजाइना और कैल्सिफिक ट्रिपल-वेसल डिजीज की परेशानी थी।
इस जटिल मामले को रीजेंसी हॉस्पिटल लिमिटेड, कानपुर के सीनियर कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. अभिनीत गुप्ता ने बहुत सूझबूझ के साथ संभाला। दरअसल, यह मामला इतना जटिल था कि मरीज में कोरोनरी संबंधी हालात बहुत बिगड़ चुके थे और किसी अन्य अस्पताल में एंजियोप्लास्टी की कोशिश गंभीर रूप से कैल्शियम जमा हो जाने से बेकार चली गई थी। लेकिन डॉ. गुप्ता और उनकी टीम के सदस्य इस बात से चिंतित नहीं हुए और उन्होंने राइट कोरोनरी आर्टरी (आरसीए) में डिफ्यूज सर्कमफेरेंशियल कैल्सिफिकेशन में बदलाव के लिए क्रांतिकारी शॉकवेव सी2+ आईवीएल कैथेटर तकनीक का प्रयोग किया। इससे स्टेंट को सफलतापूर्वक लगाने का रास्ता खुल गया।
इंट्रावैस्कुलर लिथोट्रिप्सी (आईवीएल) ऐसी आधुनिक तकनीक है, जिसे धमनियों में कैल्शियम जमा होने की समस्या से निपटने के लिए तैयार किया गया है। इसमें सोनिक प्रेशर वेव्स का प्रयोग किया जाता है। बता दें कि जैसे-जैसे धमनियों की उम्र बढ़ती है, उनमें कैल्शियम जमा होने से वे सख्त होने लगती हैं और पारंपरिक तरीकों से उनका इलाज करना मुश्किल हो जाता है। इससे स्टेंट डालने की प्रक्रिया में परेशानी आती है। शॉकवेव इंट्रावैस्कुलर लिथोट्रिप्सी में सोनिक प्रेशर वेव्स का प्रयोग करके बीच के और अंदर के कैल्शियम को तोड़ा जाता है। इससे वाहिका की दीवारों (वेसल-वॉल) को कम से कम नुकसान पहुंचता है। यह विशेष विधि पूर्व में इस्तेमाल की जाने वाली कैल्शियम मॉडिफिकेशन तकनीकों जैसे - रोटा-एब्लेशन से जुड़े खतरों को काफी कम करती है। खासतौर से इस मामले में प्रयोग की गई शॉकवेव सी2+ आईवीएल कैथेटर तकनीक लंबे कैल्सिफिक घावों में विशेष रूप से असरदार साबित हुई है।
डॉ. अभिनीत गुप्ता ने बताया, "यह कानपुर में अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें सी2+ शॉकवेव आईवीएल का प्रयोग किया गया। इसके सफल परिणाम से जटिल कोरोनरी मामलों में इसकी क्षमता का अनुमान लग चुका है।