समय रहते कैंसर की पहचान, बचा सकती है 70 फीसदी तक मरीजो की जान
U- 50 फीसदी मरीज टीबी के भ्रम में समय को करते है बर्बाद
U-टीबी के साथ कैंसर की जांच करवाना मरीज के लिए रहता है हितकर
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर। ब्लड कैंसर डे पर जीएसवीएम मेडिकल कालेज में कैंसर मरीजो को लेकर डॉ कुश पाठक द्वारा चर्चा की गई। डॉ कुश पाठक ने बताया कि अगर कैंसर की पहचान जल्द और समय पर हो जाए तो मरीज के 70 फभ्सदी तक बचने की चांस होते है।
ब्लड कैंसर डे पर डॉ कुश पाठक ने बताया कि 2 से 50 वर्ष तक की आयु वाले लोगो में कैंसर की संभवना ज्यादा बढ़ रही है और वह अंतिम स्टेज पर डाक्टरो के पास पहुंच रहे है। इन मरीजो में डब्लूबीसी (वहाइट ब्लड सेल) और लिम्फोसाइट देखने को मिल रहे है। जिसमें कैंसर की गांठे निम्न स्तर पर देखने को मिलती है जैसेें गले में गांठ का पडना, जांघो के बीच गांठ का पडना, पेट में गांठ का पडना, काख में गांठ का होना प्रमुख है। अधिकांश मरीजो में ऐसी गांठो का पडना टीबी की बीमारी होने का भी इशारा करती है। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि गांठ पडने पर टीबी की जांचे चालू कर दी जाती जबकि पहली स्टेज में बायोप्सी के द्वारा ही पूर्व में जांच करवा लेनी चाहिए। कैंसर के टाइप-बी के सिम्टम्स में बुखार का आना, वजन का गिरना प्रमुख कारण है। उन्होंने बताया कि टीबी के भ्रम में ल्युकोमा को नजरअंदाज करना मरीज के लिए खासा परेशानी का कारण बन जाती है। इसके लिए मॉलिकुलर स्टडी, पैट स्कैन और बायोप्सी के द्वारा इसकी पहचान की जा सकती है। डॉ कुश पाठक ने बताया कि अगर कैंसर के मरीज में कैंसर होने की पुष्टि का समय रहते पता चल जाए तो मरीज की 70 फीसदी तक जान बचाई जा सकती है। जबकि वहीं 50 फीसदी लोग भ्रम में रहते है कि उन्हें टीबी की गांठ है और उसका इलाज कराते है ,लेकिन जब इलाज से सही नही होता है और वह जब कैंसर से सम्बंधित डाक्टर्स के पास पहुंचते है तब तक काफी देर हो चुकी होती है और वह अपनी अंतिम स्टेज पर पहुंच जाते है। डॉ कुश पाठक ने कहा कि ऐसे मरीजो को टीबी की जांच के साथ ही मॉलिकुलर स्टडी, पैट स्कैन, व बायोप्सी के द्वारा जांच करवा लेनी चाहिए क्यों कि अक्सर ऐसे मरीज भ्रम की स्थित में रहते है औश्र इसे दूर करने के लिए इन जांचो का होना बहुत ही जरूरी है।