अमृता हॉस्पिटल में तीन महिलाओं की बची जान
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | जब ज़िंदगी की सारी उम्मीदें टूट जाएं, तब कहीं एक दरवाज़ा खुलता है। ऐसा ही हुआ अमृता हॉस्पिटल, में जहां तीन गंभीर दिल की मरीज महिलाओं को वह इलाज मिला, जो देश के कई बड़े अस्पतालों ने देने से मना कर दिया था। इनमें थीं — 60 वर्षीय संतोष यादव, 61 वर्षीय रूफिया परवीन खान, और 28 वर्षीय इंदु कुमारी, जो झारखंड के एक दूरदराज़ आदिवासी गांव से आई थीं। तीनों की स्थिति इतनी नाज़ुक थी कि उन्हें ‘इनऑपरेबल’ यानी इलाज के लायक नहीं बताया गया था। लेकिन अमृता हॉस्पिटल की टीम ने इनका केस दोबारा समझा, रिस्क उठाया, और आज ये तीनों महिलाएं स्वस्थ होकर नई ज़िंदगी जी रही हैं।डॉ. समीर भाटे, हेड – कार्डियक सर्जरी, ने कहा: "इन तीनों मरीजों—इंदु, संतोष और रूफिया—की कहानियाँ अलग थीं, लेकिन एक बात समान थी: सबको कहीं न कहीं से मना कर दिया गया था। इंदु का दिल चार गुना बड़ा हो चुका था, संतोष और रूफिया की हालत को देख दूसरे अस्पतालों ने सर्जरी से इनकार कर दिया था। हमने सिर्फ जांच रिपोर्ट नहीं देखीं, हमने उनके हौसले, उनके परिवार की उम्मीदें और हमारी ज़िम्मेदारी को देखा। हमें लगा अगर अब नहीं किया, तो शायद कभी नहीं कर पाएंगे। यही सोचकर हमने जोखिम उठाया—क्योंकि कई बार किताबों से ज़्यादा इंसानियत की बात सुननी पड़ती है।
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