एक दिवसीय यूपीएसआईकॉन-2025 प्री कांफ्रेस वर्कशॉप
U- लेप्रोस्कोपी, इंडोस्कोपी और टांके लगाने की विधियों के बारे में दी गई जानकारी
U- सुचरिंग की सही जानकारी न होने से मरीज को हो सकती है दिक्कत
कानपुर। सर्जरी की नई विधियों को आम जनमानस तक पहुंचाने के लिए यूपीएसआईकॉन-2025 प्री कांफ्रेस वर्कशॉप का शुभारम्भ जीएसवीएम मेडिकल कालेज के पीएमएसएसवाई सुपर स्पेशिलिटी में प्राचार्य डॉ संजय काला, सर्जरी विभागध्यक्ष डॉ जी.डी यादव, डॉ आर.के मौर्या, डॉ आर.के जौहरी व अन्य वरिष्ठ चिकित्सको ने दीप प्रज्जवलन कर किया। इस वर्कशॉप को करने का उद्देश्य सर्जरी की विभिन्न आधुनिक क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान कर युवा व प्रैक्टिसी सर्जनो को प्रशिक्षण प्रदान करना था। कार्यक्रम का अन्य जनपदो से आए डाक्टरो ने सर्जरी की नई तकनीकियों के बारे में छात्रो को बताया साथ ही वर्कशॉप के माध्मय से उन्हें ट्रेनिंग दी गई। यह वर्कशॉप तीन दिवसीय चलेगी जिसमें विशेषज्ञ अपने अनुभव साझा करेंगे।
इस दौरान गायनी विभागध्यक्ष डॉ रेनू गुप्ता, मीडिया प्रभारी प्रो डॉ सीमा द्विवेदी रही।
- लेप्रोस्कोपी विधि से मरीजो को मिल रहा है फायदा
यूपीएसआईकॉन-2025 प्री कांफ्रेस वर्कशॉप में सर्जरी की नई तकनिकियों के बारे में बताते हुए सैफई मेडिकल कालेज से आए डॉ सोमेन्द्र पाल सिंह ने बताया कि ओपन सर्जरी से ज्यादा लेप्रोस्कोपी से मरीजो को फायदा मिल रहा है। क्यों कि लेप्रोस्कोपी में मरीज को 5 एमएम का चीरा लगाया जाता है और दूरबीन विधि से उसका सफल ऑप्रेशन कर दिया जाता है जिसमें मरीज को कम दर्द होता है और उसे 24 से 36 घंटे में छुट्टी दे दी जाती है। उन्होंने बताया कि भारत में वर्ष 1994 में लेप्रोस्केपी आ गई थी,लेकिन जागरूकता के अभाव में लोग ओपेन सर्जरी करवाना ही बेहतर मानते थे,लेकिन अब समय के साथ अत्याधुनिक विधि आ गई है जिनसे मरीज को कम समय और कम खर्च में ही उसका सफल ऑपरेशन किया जा सकता है। इसके साथ अब रोबोटिक सर्जरी भी तेजी से आगे बढ़ रही है जिसे डाक्टर्स ओटी के बाहर से भी कंट्रोल कर मरीज की सर्जरी को 100 प्रतिशत सफल् तरीके से कर सकते है। लेप्रोस्कोपी से मुख्यः गॉल ब्लाडर, हार्निया व एपेडिंक्स जैसी सर्जरी ककी जाती है जो कि पूरी तरह से सुरक्षित रहती है। उन्होंने युवा चिकित्सको को संदेश देते हुए कहा कि नालेज, रिसर्च व स्किल डेवलेप्मेंट पर अगर ध्यान दिया जाए तो सर्जन बेहतर सर्जरी कर सकते है।
- जरूरत पडने पर ही कराए इंडोस्कोपी
जीएसवीएम मेडिकल कालेज के वरि. सर्जन डॉ आर.के. जौहरी व आगरा मेडिकल कालेज सर्जरी विभागध्यक्ष डॉ अंशिका मित्तल ने बताया कि इंडोस्कोपी करने से मरीज के अन्दर पनप रही बीमारियों को आसानी से पता लगाया जा सकता है। क्यो कि मरीज को पेट के अन्दर आंतो में कहा दिक्कत है या कही पर गांठ है तो इसका तभी चल सकता है जब मरीज की इंडोस्कोपी की जाये। इंडोस्केपी करने से समय रहते बीमारी का पता चल जाता है और उसका इलाज कर मरीज को बचाया जा सकता है। वही डॉ आर.के.जौहरी ने बताया कि इंडोस्कोपी सर्जन ही करते थे ,लेकिन अत्याधिक व्यस्तता के कारण गैट्रो फिजिशियन इंडोस्कोपी करने लगे है। इंडोस्कोपी बहुत जरूरी हो तभी कराना चाहिए क्योकि इसको करने में भी रिस्क होता है। मरीज कभी -कभी नली को खींच देता है या गले में नली डालते समय भोजन नली फट जाती है जिससे मरीज की हालत गंभीर हो सकती है इस लिए इंडोस्केपी करने से पूर्व मरीज की काउंसिलिंग जरूर करनी चाहिए। क्यो कि बायोप्सी के लिए इंडोस्कोपी करना बहुत जरूरी होता है।
- सुचरिंग की सही जानकारी होना बहुत जरूरी
लखनऊ से आए सर्जन डॉ विकास सिंह ने बताया कि लेप्रो विधि से सुचरिंग यानी की टांके लगाने की विधि के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आज की वर्कशॉप में गायनी के डाक्टरो को सुचरिंग (टांके) के बारे बताया कि किस तरह सर्जरी करने के बाद मरीज के पेट को बंद करने के लिए टांके लेप्रो विधि से किस तरह से लगाये। उन्होंने बताया कि सही तरीके से सुचरिंग न होने से मरीज को हार्निया होने की संभावना 30 से 40 फीसदी रहती है। गलत विधि से सुचरिंग करने पर शॉकर लाइन जो कि पिछले ऑप्रेशन का निशान होता है उसमें आंते फंस जाती है तो मरीज को उल्टी, पेट में दर्द का होना जैसे लक्षण दिखाई पड़ते है। यह 8 से 10 फीसदी लोगो में देखने को मिलता है।
- सर्जन को अल्ट्रासाउण्ड की जानकारी होना बहुत जरूरी
यूपीएसआईकॉन-2025 प्री कांफ्रेस वर्कशॉप में जीएसवीएम मेडिकल कालेज के रेडियोलॉलिस्ट प्रो. डॉ अशोक वर्मा ने बताया कि इमरजेंसी पडने पर सर्जन को अल्ट्रासाउण्ड की खास जरूरत पडती है जिसके लिए उन्हें आज की वर्कशॉप में अल्ट्रासाउण्ड करने का प्रशिक्षण दिया गया ताकि आकस्मिक समय वह इस अल्ट्रासाउण्ड कर सके।