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फसल अवशेष जलाने से कम होती है मृदा की उर्वरा शक्ति
Updated: 12/4/2025 6:05:00 AM By Reporter- rajesh kashyap kanpur

फसल अवशेष जलाने से कम होती है मृदा की उर्वरा शक्ति 
हिंदुस्तान न्यूज़ एक्सप्रेस कानपुर | सीएसए  के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन पर ग्राम स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम ग्राम मुड़ेरा में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने किसानों को गेहूं और सरसों की वैज्ञानिक खेती करने के बारे में विस्तार से जानकारी दी।उन्होंने फसल अवशेष जलने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि फसल अवशेष जलाने से वायु प्रदूषण और मृदा में सूक्ष्म जीव की संख्या में कमी आना, मृदा में पोषक तत्वों का जलना और मृदा सतह कठोर हो जाने के साथ मृदा रंध्र से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। भूमि की जल धारण क्षमता में भी कमी आती है। फसल अवशेष प्रबंधन से होने वाले लाभ के बारे में जानकारी देते हुए डॉ खान ने बताया कि मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है और मृदा में सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है। मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है।केंद्र के प्रभारी डॉ अजय कुमार सिंह ने बताया कि यदि किसान फसल अवशेष को खेत में ही सड़ाएंगे तो मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है। मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है। फसल के बीजों के जमाव के लिए अनुकूल परिस्थितियां मिल जाती हैं और अंकुरण अधिक होता है, जिससे उत्पादन भी अधिक होता है। वैज्ञानिक डॉ अरुण कुमार सिंह ने फसल अवशेष प्रबंधन में प्रयोग आने वाले कृषि यंत्रों रोटावेटर, स्ट्राॅ चाॅपर, सुपर सीडर , हैप्पी सीडर, स्ट्राॅ बेलर इत्यादि के प्रयोग से होने वाले लाभ के बारे में बताया। गृह वैज्ञानिक डॉक्टर निमिषा अवस्थी ने बताया कि धान की फसल की कटाई के बाद यदि फसल अवशेष पर यूरिया का छिड़काव कर दिया जाए तो फसल अवशेष सड़ने में समय कम लगता है। इसके अलावा फसल अवशेष इकट्ठा करके डीकंपोजर के प्रयोग द्वारा अवशेष को आसानी से सड़ाया जा सकता है, जिसका खेत में प्रयोग करके मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक दशा में सुधार होता है। वैज्ञानिकों ने हरी खाद वाली फसलों सनई, ढैंचा से होने वाले लाभ के बारे में बताया गया।इस अवसर पर शुभम यादव, मलखान सिंह राजपूत, एफपीओ के निदेशक सतीश कुमार सहित एक सैकड़ा से अधिक किसान उपस्थित रहे।

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